Hindi, asked by roshnirajasahu, 9 months ago

आचरण की सभ्यता का क्या महत्व है व्याख्या कीजिए​

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Answered by himanshuclasses0
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Explanation:

आचरण के मौन व्‍याख्‍यान से मनुष्‍य को एक नया जीवन प्राप्‍त होता है। नये-नये विचार स्वयं ही प्रकट होने लगते हैं। सूखे काष्‍ठ सचमुच ही हरे हो जाते हैं। सूखे कूपों में जल भर आता है। नये नेत्र मिलते हैं। कुल पदार्थों के साथ एक नया मैत्री-भाव फूट पड़ता है। सूर्य, जल, वायु, पुष्‍प, पत्‍थर, घास, पात, नर, नारी और बालक तक में एक अश्रुतपूर्व सुंदर मूर्ति के दर्शन होने लगते हैं।

मौनरूपी व्‍याख्‍यान की महत्ता इतनी बलवती, इतनी अर्थवती जब तक मैं अपना हथौड़ा ठीक-ठीक चलाता हूँ और रूपहीन लोहे को तलवार के रूप में गढ़ देता हूं तब तक मुझे यदि ईश्‍वर का ज्ञान नहीं तो नहीं होने दो। उस ज्ञान से मुझे प्रयोजन ही क्‍या? जब तक मैं अपना उद्धार ठीक और शुद्ध रीति से किये जाता हूं तब तक यदि मुझे आध्‍यात्मिक पवित्रता का ज्ञान नहीं होता तो न होने दो। उससे सिद्धि ही क्‍या हो सकती है? जब तक किसी जहाज के कप्‍तान के हृदय में इतनी वीरता भरी हुई है कि वह महाभयानक समय में अपने जहाज को नहीं छोड़ता तब तक यदि वह मेरी और तेरी दृष्टि में शराबी और स्‍त्रैण है तो उसे वैसा ही होने दो। उसकी बुरी बातों से हमें प्रयोजन ही क्‍या? आँधी हो - बरफ हो - बिजली की कड़क हो - समुद्र का तूफान हो - वह दिन रात आँख खोले अपने जहाज की रक्षा के लिए जहाज के पुल पर घूमता हुआ अपने धर्म का पालन करता है। वह अपने जहाज के साथ समुद्र में डूब जाता है, परंतु अपना जीवन बचाने के लिए कोई उपाय नहीं करता। क्‍या उसके आचरणों का यह अंश मेरे तेरे बिस्‍तर और आसन पर बैठे-बिठाए कहे हुए निरर्थक शब्‍दों के भाव से कम महत्‍व का है?

न मैं किसी गिरजे में जाता हूं और न किसी मंदिर में, न मैं नमाज पढ़ता हूं और न ही रोजा रखता हूं, न संध्या ही करता हूं और न कोई देव-पूजा ही करता हूं, न किसी आचार्य के नाम का मुझे पता है और न किसी के आगे मैंने सिर ही झुकाया है। तो इससे प्रयोजन ही क्‍या और इससे हानि भी क्‍या? मैं तो अपनी खेती करता हूं, अपने हल और बैलों को प्रात:काल उठकर प्रणाम करता हूं, मेरा जीवन जंगल के पेड़ों और पत्तियों की संगति में गुजरता है, आकाश के बादलों को देखते मेरा दिन निकल जाता है। मैं किसी को धोखा नहीं देता; हाँ यदि कोई मुझे धोखा दे तो उससे मेरी कोई हानि नहीं। मेरे खेत में अन्‍न उग रहा है, मेरा घर अन्‍न से भरा है, बिस्‍तर के लिए मुझे एक कमली काफी है, कमर के लिए लँगोटी और सिर के लिए एक टोपी बस है। हाथ-पाँव मेरे बलवान हैं, शरीर मेरा अरोग्‍य है, भूख खूब लगती है, बाजरा और मकई, छाछ और दही, दूध और मक्‍खन मुझे और बच्‍चों को खाने के‍ लिए मिल जाता है। क्‍या इस किसान की सादगी और सच्‍चाई में वह मिठास नहीं जिसकी प्राप्ति के लिए भिन्‍न-भिन्‍न धर्म संप्रदाय लंबी-चौड़ी और चिकनी-‍चुपड़ी बातों द्वारा दीक्षा दिया करते हैं?

जब साहित्‍य, संगीत और कला की अति ने रोम को घोड़े से उतारकर मखमल के गद्दों पर लिटा दिया - जब आलस्‍य और विषय-विकार की लंपटता ने जंगल और पहाड़ की साफ हवा के असभ्‍य और उद्दंड जीवन से रोमवालों का मुख मोड़ दिया तब रोम न‍रम तकियों और बिस्‍तरों पर ऐसा सोया कि अब त‍क न आप जागा और न कोई उसे जगा सका। ऐंग्‍लोसेक्‍सन जाति ने जो उच्‍च पद प्राप्‍त किया बस उसने अपने समुद्र, जंगल और पर्वत से संबंध रखने वाले जीवन से ही प्राप्‍त किया। जाति की उन्‍नति लड़ने-भिड़ने, मरने-मारने, लूटने और लूटे जाने, शिकार करने और शिकार होने वाले जीवन का ही परिणाम है। लोग कहते हैं, केवल धर्म ही जाति की उन्‍नति करता है। यह ठीक है, परंतु यह धर्मांकुर जो जाति को उन्‍नत करता है, इस असभ्‍य, कमीने पापमय जीवन की गंदी राख के ढेर के ऊपर नहीं उगता है। मंदिरों और गिरजों की मंद-मंद टिमटिमाती हुई मोमबत्तियों की रोशनी से यूरप इस उच्‍चावस्‍था को नहीं पहुँचा। वह कठोर जीवन जिसको देश-देशांतरों को ढूँढ़ते फिरते रहने के बिना शांति नहीं मिलती; जिसकी अंतर्ज्‍वाला दूसरी जातियों को जीतने, लूटने, मारने और उन पर राज रकने के बिना मंद नहीं पड़ती - केवल वहीं विशाल जीवन समुद्र की छाती पर मूँग दलकर और पहाड़ों को फाँदकर उनको उस महानता की ओर ले गया और ले जा रहा है। राबिनहुड की प्रशंसा में जो कवि अपनी सारी शक्ति खर्च कर देते हैं उन्‍हें तत्‍वदर्शी कहना चाहिए, क्‍योंकि राबिनहुड जैसे भौतिक पदार्थों से ही नेलसन और वेलिंगटन जैसे अंगरेज वीरों की हड्डियां तैयार हुई थीं। लड़ाई के आजकल के सामान - गोला, बारूद, जंगी जहाज और तिजारती बेड़ों आदि - को देखकर कहना पड़ता है कि इनसे वर्तमान सभ्‍यता से भी कहीं अधिक उच्‍च सभ्‍यता का जन्‍म होगा।

धर्म और आध्‍यात्मिक विद्या के पौधे को ऐसी आरोग्‍य-वर्धक भूमि देने के लिए, जिसमें वह प्रकाश और वायु सदा खिलता रहे,

Answered by dryogeshkodhawade123
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Answer:

Answer: सरदार पूर्ण सिंह ने 'आचरण की सभ्यता' निबंध में विद्या, कला, कविता, साहित्य, धन, और राजस्व सभी से अधिक शुद्ध आचरण को महत्व दिया है। इसके लिए लेखक ने नम्रता, दया, प्रेम और उदारता को हृदय में स्थान देना आवश्यक बताया है। अच्छे आचरण वाले व्यक्ति के प्रेम और धर्म से सारे जगत का कल्याण होता है।J

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