History, asked by komalvineet509, 7 months ago

aadhunik Bharat mein Muslim sudhar andolan mein syed ahmed khan ke yogdan likhiye

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Answered by ammara39
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Answer:

Syed Ahmed Taqvi bin Syed Muhammad Muttaqi[1] KCSI (Urdu: سید احمد خان‎; 17 October 1817 – 27 March 1898), commonly known as Sir Syed Ahmed Khan, was an Islamic pragmatist,[2] Islamic reformer,[3][4] and philosopher of nineteenth century British India.[5][6][7] Born into a family with strong debts to the Mughal court, Ahmed studied the Quran and Sciences within the court. He was awarded an honorary LLD from the University of Edinburgh in 1889.

In 1838, Syed Ahmed entered the service of East India Company and went on to become a judge at a Small Causes Court in 1867, retiring from 1876. During the Indian Rebellion of 1857, he remained loyal to the British Raj and was noted for his actions in saving European lives.After the rebellion, he penned the booklet The Causes of the Indian Mutiny – a daring critique, at the time, of British policies that he blamed for causing the revolt. Believing that the future of Muslims was threatened by the rigidity of their orthodox outlook, Sir Ahmad began promoting Western–style scientific education by founding modern schools and journals and organising Islamic entrepreneurs.

In 1859, Syed established Gulshan School at Muradabad, Victoria School at Ghazipur in 1863, and a scientific society for Muslims in 1864. In 1875, founded the Muhammadan Anglo-Oriental College, the first Muslim university in Southern Asia.[9] During his career, Syed repeatedly called upon Muslims to loyally serve the British Raj and promoted the adoption of Urdu as the lingua franca of all Indian Muslims. Syed criticized the Indian National Congress.

Syed maintains a strong legacy in Pakistan and among Indian Muslims. He strongly influenced other Muslim leaders including Allama Iqbal and Jinnah. His advocacy of Islam's rationalist (Muʿtazila) tradition, and at broader, radical reinterpretation of the Quran to make it compatible with science and modernity, continues to influence the global Islamic reformation. Many universities and public buildings in Pakistan bear Sir Syed's name.

Aligarh Muslim University celebrated its 200th birth centenary with much enthusiasm on 17 October 2017. Former President of India Pranab Mukherjee was the chief guest.

Answered by rainasuman917
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Answer:

शरीयतुल्ला ने बंगाल के फरायजी आंदोलन की शुरुआत की, जिसने कृषकों के हित में कई कदम उठाये थे| उन्होंने मुस्लिम समाज की जाति-व्यवस्था का तीव्र विरोध किया था|

शरीयतुल्ला ने बंगाल के फरायजी आंदोलन की शुरुआत की, जिसने कृषकों के हित में कई कदम उठाये थे| उन्होंने मुस्लिम समाज में प्रचलित जाति-व्यवस्था का तीव्र विरोध किया था| 19 वीं सदी के प्रथम पचास वर्षों के दौरान दिल्ली व कलकत्ता के कुछ मुट्ठी भर लोग ही अंग्रेजी शिक्षा हासिल कर पाए थे| अधिकांश मुस्लिमों ने स्वयं को अंग्रेजी शिक्षा से दूर ही रखा, जिसका कारण उलेमाओं व मुस्लिम काजियों का रवैया और उच्च मुस्लिम वर्ग की ब्रिटिश राज के साथ मेल-मिलाप बढाने के प्रति रूचि का न होना था| सन 1857 के विद्रोह में मुस्लिमों की सक्रिय भागीदारी ने ब्रिटिशों के मन में मुस्लिमों के प्रति असंतोष का भाव पैदा कर दिया|

फिर भी जागृत और शिक्षित मुस्लिमों का एक हिस्सा के नाते शरीयतुल्ला ने शासकों के प्रति सहयोगपूर्ण नीति को अपनाने और ब्रिटिशों की सहायता से मुस्लिम समाज की सामाजिक स्थिति में सुधार लाने की जरुरत महसूस की| आधुनिक शिक्षा के प्रसार और पर्दा व बहुविवाह जैसी सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए कुछ आन्दोलन भी चलाये गए थे| नवाब अब्दुल लतीफ़ (1828-1893) द्वारा 1863 ई. में स्थापित कलकत्ता की मोहम्मदन लिटरेसी सोसाइटी उन कुछेक प्रारंभिक संस्थाओं में से एक थी जिसने इस दिशा में कदम बढाये थे|इसने शिक्षा के प्रसार,विशेष रूप से बंगाल के मुस्लिमों के बीच,के साथ साथ हिन्दू-मुस्लिम एकता को भी बढावा दिया|

वहाबी आन्दोलन

इसे ‘वलीउल्लाह आन्दोलन’ के नाम से भी जाना जाता है, जिसकी शुरुआत पश्चिमी प्रभावों की प्रतिक्रियास्वरुप हुई थी| यह आन्दोलन शाह वलीउल्लाह, जिन्हें प्रथम भारतीय मुस्लिम नेता भी माना जाता है, की शिक्षाओं से प्रेरित था| यह पूरा का पूरा आन्दोलन कुरान और हदीस की शिक्षाओं पर आधारित था|

अहमदिया आन्दोलन

इस आन्दोलन की शुरुआत मिर्ज़ा गुलाम अहमद द्वारा 1889 ई. में भारतीय मुसलमानों के बीच पश्चिमी शिक्षा के प्रसार के उद्देश्य से की गयी थी|यह आन्दोलन,ब्रहम समाज के समान,उदारवादी मूल्यों पर आधारित था|

देवबंद स्कूल

यह उदारवादी आन्दोलन के विरोध में कुछ रूढ़िवादी मुस्लिम उलेमाओं द्वारा शुरू किया गया आन्दोलन था जोकि कुरान और हदीस के आधार पर इस्लाम के वास्तविक सार की शिक्षा देना चाहता था और इन्होने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जिहाद की संकल्पना का भी प्रतिपादन किया|

निष्कर्ष

19वीं सदी न केवल हिन्दू-मुस्लिम बल्कि देश के संपूर्ण समाज के लिए जागरण का काल थी| इस काल में सभी धर्मों में धर्म के नाम पर प्रचलित कुप्रथाओं को दूर करने के लिए अनेक सुधारक सामने आये और भारतीय संस्कृति व दर्शन की महानता का प्रतिपादन किया| राष्ट्रीय गौरव, आत्म-सम्मान, आत्म-निर्भरता जैसे विचारों का प्रचार-प्रसार किया गया|

Explanation:

शरीयतुल्ला ने बंगाल के फरायजी आंदोलन की शुरुआत की, जिसने कृषकों के हित में कई कदम उठाये थे| उन्होंने मुस्लिम समाज की जाति-व्यवस्था का तीव्र विरोध किया था|

शरीयतुल्ला ने बंगाल के फरायजी आंदोलन की शुरुआत की, जिसने कृषकों के हित में कई कदम उठाये थे| उन्होंने मुस्लिम समाज में प्रचलित जाति-व्यवस्था का तीव्र विरोध किया था| 19 वीं सदी के प्रथम पचास वर्षों के दौरान दिल्ली व कलकत्ता के कुछ मुट्ठी भर लोग ही अंग्रेजी शिक्षा हासिल कर पाए थे| अधिकांश मुस्लिमों ने स्वयं को अंग्रेजी शिक्षा से दूर ही रखा, जिसका कारण उलेमाओं व मुस्लिम काजियों का रवैया और उच्च मुस्लिम वर्ग की ब्रिटिश राज के साथ मेल-मिलाप बढाने के प्रति रूचि का न होना था| सन 1857 के विद्रोह में मुस्लिमों की सक्रिय भागीदारी ने ब्रिटिशों के मन में मुस्लिमों के प्रति असंतोष का भाव पैदा कर दिया|

फिर भी जागृत और शिक्षित मुस्लिमों का एक हिस्सा के नाते शरीयतुल्ला ने शासकों के प्रति सहयोगपूर्ण नीति को अपनाने और ब्रिटिशों की सहायता से मुस्लिम समाज की सामाजिक स्थिति में सुधार लाने की जरुरत महसूस की| आधुनिक शिक्षा के प्रसार और पर्दा व बहुविवाह जैसी सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए कुछ आन्दोलन भी चलाये गए थे| नवाब अब्दुल लतीफ़ (1828-1893) द्वारा 1863 ई. में स्थापित कलकत्ता की मोहम्मदन लिटरेसी सोसाइटी उन कुछेक प्रारंभिक संस्थाओं में से एक थी जिसने इस दिशा में कदम बढाये थे|इसने शिक्षा के प्रसार,विशेष रूप से बंगाल के मुस्लिमों के बीच,के साथ साथ हिन्दू-मुस्लिम एकता को भी बढावा दिया|

वहाबी आन्दोलन

इसे ‘वलीउल्लाह आन्दोलन’ के नाम से भी जाना जाता है, जिसकी शुरुआत पश्चिमी प्रभावों की प्रतिक्रियास्वरुप हुई थी| यह आन्दोलन शाह वलीउल्लाह, जिन्हें प्रथम भारतीय मुस्लिम नेता भी माना जाता है, की शिक्षाओं से प्रेरित था| यह पूरा का पूरा आन्दोलन कुरान और हदीस की शिक्षाओं पर आधारित था|

अहमदिया आन्दोलन

इस आन्दोलन की शुरुआत मिर्ज़ा गुलाम अहमद द्वारा 1889 ई. में भारतीय मुसलमानों के बीच पश्चिमी शिक्षा के प्रसार के उद्देश्य से की गयी थी|यह आन्दोलन,ब्रहम समाज के समान,उदारवादी मूल्यों पर आधारित था|

देवबंद स्कूल

यह उदारवादी आन्दोलन के विरोध में कुछ रूढ़िवादी मुस्लिम उलेमाओं द्वारा शुरू किया गया आन्दोलन था जोकि कुरान और हदीस के आधार पर इस्लाम के वास्तविक सार की शिक्षा देना चाहता था और इन्होने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जिहाद की संकल्पना का भी प्रतिपादन किया|

निष्कर्ष

19वीं सदी न केवल हिन्दू-मुस्लिम बल्कि देश के संपूर्ण समाज के लिए जागरण का काल थी| इस काल में सभी धर्मों में धर्म के नाम पर प्रचलित कुप्रथाओं को दूर करने के लिए अनेक सुधारक सामने आये और भारतीय संस्कृति व दर्शन की महानता का प्रतिपादन किया| राष्ट्रीय गौरव, आत्म-सम्मान, आत्म-निर्भरता जैसे विचारों का प्रचार-प्रसार किया गया|

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