Aadhunik parivesh mein aatmabal per nibandh
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1947 में ब्रिटिश शासन से आजादी प्राप्ति के बाद आधी शताब्दी से भी अधिक समय बीत चुका है। परन्तु हमने इतने वर्षों में क्या खोया या पाया, आइये इसका आकलन करें। पिछले 63 वर्षों में भारत में गरीबी घटी है लेकिन अभी भी लगभग 25 प्रतिशत लोग काफी दयनीय अवस्था में जीवन-यापन कर रहें हैं। उनको भूख के अलावा मूलभूत सुविधाओं, स्वास्थ्य सम्बन्धी सेवाओं और नौकरियों के अभाव का सामना करना पड़ता है। मध्यवर्गीय परिवारों की स्थिति कुछ विशेष रूप से भिन्न नहीं है। धनाढ्य वर्ग का कारोबार | व प्रभुत्व बढ़ा है। परन्तु ये परिवार देश की कुल जनसंख्या का केवल 20 प्रतिशत है।
आजादी के बाद हमने मूलभूत उद्योगों, कृषि, कपड़ा व टैक्सटाइल, यातायात और दूरसंचार के क्षेत्रों में बहुत उन्नति की है। खाद्यान्न के मामले में हम बिल्कुल आत्मनिर्भर | हो चुके हैं। हम हर प्रकार की वस्तु व सेवा का देश में उत्पादन कर रहे हैं। फलस्वरूप हमारी अर्थव्यवस्था विश्व की पांच प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक हो गई है। पेट्रोलियम | पदार्थों के क्षेत्र में हम विदेशी स्रोतों पर आंशिक रूप से निर्भर हैं। इसके अलावा हमारी अर्थव्यवस्था विश्व की उन्मुक्त बाजार प्रणाली से सामंजस्य बिठा चुकी है। भारत अब अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राओं के समक्ष स्वतंत्र रूप से अपने रुपये का आदान-प्रदान कर रहा है। हमारे निर्यात व आयात भी बढ़ रहे हैं। परन्तु अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में अभी तक कुल मिला कर घाटा ही चल रहा है क्योंकि आयात के आंकड़े निर्यात के आंकड़ों से अधिक हैं।
सामाजिक व आर्थिक स्तरों पर हमारे देश में प्रगति हुई है। परन्तु युवा मुख्य मार्ग | से भटक कर सिनेमा, इन्टरनैट, नशीली दवाओं और उन्मुक्त जीवन की व्याधियों के शिकार हो गये हैं। कुछ छात्र अपने जीवन के ध्येय निर्धारित करते हैं और सफल भी होते | हैं। कारोबार बढ़ने से उद्योगों की उत्पादकता व संख्या में वृद्धि हुई है। परन्तु बेरोजगारों की संख्या भी बढ़ी है।
नैतिक मूल्यों का ह्रास भारत में सत्तर के दशक में ही आरम्भ हो गया था। अब हम सब पश्चिमी सभ्यता के रंग में रंगे जा चुके हैं। विदेशी पहनावा, भाषायें तथा खान-पान हमें आधुनिक लगते हैं। हमारे पूर्वजों की देन हमें याद नहीं रह गई है और डिस्को, मद्यपान, नशा, तेज रफ्तार से चलने वाला जीवन व आपसी मनमुटाव हमारे जीवन के अभिन्न अंग बन कर रह गये हैं। सबसे अधिक हमने अपना राष्ट्रीय चरित्र खो दिया है जिससे समाज में अनाचार तथा भ्रष्टाचार में वृद्धि हुई है। आज हमारे आचार-विचार, सदाचार, आदर्श और मानवीयता की नाव मंझधार में फंस कर डूबने को तैयार है।
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की प्रतिष्ठा बढ़ी है। हमारी भावनाओं, इच्छाओं तथा | गतिविधियों का आदर पूरे विश्व में होता है। कश्मीर समस्या व चीन के साथ सम्बन्ध दो | मुद्दे हैं जिनके परिपेक्ष्य में भारत को कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। कुल मिला कर भारत की स्वतंत्रता के 62 वर्षों में हमने प्रगति की है। परन्तु और | प्रगति की आवश्यकता है ताकि भारत विश्व का अग्रणी राष्ट्र बन सके।
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