Aadhunik shiksha pratha easy
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प्रस्तावना:
भारत की प्राचीन संस्कृति अत्यन्त गौरवपूर्ण थी । यहाँ अनेक ऋषि, मुनि, विचारक, दार्शनिक पैदा हुए जिन्होने अपने उर्वरक मस्तिष्क से अनेक ग्रन्धों का प्रणयन किया । वेद, विश्व के प्राचीनतम लिखित ग्रन्ध हैं । उनसे ज्ञात होता है कि उन दिनों हमारे देश में शिक्षा का काफी प्रचार व प्रसार था । यह विद्या का केन्द्र था । यहाँ विदेशी लोग भी विद्या ग्रहण करने के लिए आते थे ।
आधुनिक शिक्षा प्रणाली की नींव:
सन् 1833 में लार्ड मैकाले की शिक्षा नीति ने ऐसी शिक्षा प्रणाली की नीव डाली जो आज तक हिल नहीं सकी है । मैकाले ने कहा कि भारत में ऐसी शिक्षा प्रणाली लागू की जाए जिसके द्वारा ऐसे बच्चों का निर्माण किया जाये जो देखने में भारतीय और स्वभाव में अंग्रेज बन जायें वही शिक्षा प्रणाली थोड़े बहुत युग परिवर्तन के साथ परिवर्तित होती रहती है । मैकाले की शिक्षा नीति पर आधारित अंग्रेजी शासन काल में उन्होने निहित स्वार्थ के लिए विद्यालय, कालेज व विश्वविद्यालयों का निर्माण किया जिनमें भारतीयों के लिए ज्ञान-विज्ञान के वातायन खुले हुए थे । इस तरह उन्होंने भारतीयों को आधुनिक शिक्षा के अवसर प्रदान कर दिये ।
स्वतंत्र भारत की शिक्षा प्रणाली:
भारत के स्वतंत्र होने पर भारत सरकार ने शिक्षा में सुधार के लिए अनेक शिक्षा आयोग बिठाये, जिनमें राधाकृष्णन आयोग, मुदालियर आयोग, कोठारी आयोग प्रमुख है ।
ये आयोग मैकाले शिक्षा नीति में आमूल-चूल परिवर्तन करने में असफल रहे । इन्हे मैकाले शिक्षा का संशोधन मात्र कहना उचित होगा । आज तक जो भी शिक्षा के सम्बन्ध में आयोग बैठे उन्होने मैकाले अग्रेजियत को दूर करने का तनिक प्रयास नही किया ।
आधुनिक शिक्षा प्रणाली के दोष:
आधुनिक शिक्षा प्रणाली में प्रथम दोष यह है कि यहाँ शिक्षा की द्वैध प्रणाली है । बड़े घरी के बच्चो के लिए अंग्रेजी माध्यम के पब्लिक स्कूल और साधारण घरो के बच्चो के लिए भारतीय भाषाओ के माध्यम वाले सरकारी व अर्द्ध-सरकारी विद्यालय हैं ।
सुधार के उपाय:
किसी देश में स्वभाषा, स्व-संस्कृति के ज्ञान से स्वत: ही राष्ट्र-प्रेम, समाज प्रेम व जन प्रेम पैदा होता है । देश में सबके लिए एक जैसी शिक्षा प्रणाली हो । शिक्षा का माध्यम स्व-भाषा होनी चाहिए जिसके द्वारा स्व-संस्कृति से अपनत्व की भावना बढ़ती है । शिक्षा को जीवनोपयोगी बनाया जाए ।
उपसंहार:
शिक्षा ही देश की प्रगति की बुनियाद है । शिक्षा में आवश्यक व आमूल-चूल सुधार के बिना भारत प्रगति की राह पर मन्द गति से चल रहा है । इसलिए शिक्षा क बुनियादी ढाँचा बिल्कुल बदल दिया जाए । जीवन के अमूल्य समय को मानव, विद्यालयो में खर्च करता है यदि यह समय व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त करने में लग जाए तो हर व्यक्ति अपनी रुचि के अनुकूल आजीविका कमा सकता है ।