Aadikal ki Pramukh dharao Ka sankshipt Parichay dijie
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हिन्दी साहित्य के इतिहास में लगभग ८वीं शताब्दी से लेकर १४वीं शताब्दी के मध्य तक के काल को आदिकाल कहा जाता है। इस युग को यह नाम डॉ॰ हजारी प्रसाद द्विवेदी से मिला है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने 'वीरगाथा काल' तथा विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने इसे 'वीरकाल' नाम दिया है। इस काल की समय के आधार पर साहित्य का इतिहास लिखने वाले मिश्र बंधुओं ने इसका नाम प्रारंभिक काल किया और आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने बीजवपन काल। डॉ॰ रामकुमार वर्मा ने इस काल की प्रमुख प्रवृत्तियों के आधार पर इसको चारण-काल कहा है और राहुल संकृत्यायन ने सिद्ध-सामन्त काल।
इस समय का साहित्य मुख्यतः चार रूपों में मिलता है :
सिद्ध-साहित्य तथा नाथ-साहित्य,
जैन साहित्य,
चारणी-साहित्य,
प्रकीर्णक साहित्य
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आदिकाल की प्रमुख धाराएं--
१) रचनाओं की अप्रामाणिकता थी।
२) युद्धों का सजीव वर्णन
३) वीर एवं श्रृंगार रस की अभिव्यक्ति थी
४) अतिशयोक्ति पूर्ण वर्णन
५) व्यापक राष्ट्रीयता का अभाव
६) जन-जीवन का अभाव।