aadivasi jivan saral nirbhik or. prakriti ke sabse karib. hai is sandarbh men unke gunon ke 4 udaharen Amer shahid veer narayan singh. path ke adhar par likhiye.
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आज हम याद कर रहे हैं छत्तीसगढ़ के अमर शहीद वीर नारायण सिंह को, जिन्हें आज के ही दिन ब्रिटिश हुक्मरानों ने सन् 1857 को तोप से बांधकर उड़ा दिया था। उनके बारे में पहली बार विस्तृत जानकारी सन् 1979 में शहीद शंकर गुहा नियोगी द्वारा उजागर की गई। उन्होंने इस संबंध में ‘आज की पीढ़ी और वीर नारायण सिंह की वसीयत’ शीर्षक यात्रा संस्मरण लिखा, जिसे छत्तीसगढ़ माईन्स श्रमिक संघ द्वारा प्रकाशित स्मारिका ‘छत्तीसगढ़ के किसान युद्ध का पहला क्रांतिकारी शहीद वीर नारायण सिंह’ में शामिल किया गया। उनकी इस यात्रा में सहदेव साहू भी शामिल रहे। प्रस्तुत लेख शंकर गुहा नियोगी की यात्रा संस्मरण के अंशों पर आधारित है। इसे हू-ब-हू रखा गया है। चूंकि अंश अलग-अलग पृष्ठों से लिए गए हैं, इसलिए पठनीयता बरकरार रखने के लिए आंशिक तौर पर संपादन किया गया है। मूल पाठ से संपादन को पृथक रखने के लिए बड़े कोष्ठक में रखा गया है।
वीर नारायण सिंह पर आधारित इस लेख को प्रकाशित करने का हमारा एक मकसद यह है कि आज की युवा पीढ़ी उस संघर्ष को जाने और समझे, जो आज से 161 वर्ष पहले छत्तीसगढ़ के इलाकों में चल रहा था। उनका संघर्ष ब्रिटिश हुक्मरानों की साम्राज्यवादी नीतियों, स्थानीय सामंतों व साहूकारों के शोषण के खिलाफ था।
दूसरा मकसद, आज के मौजूदा हुक्मरानों का ध्यान वीर नारायण सिंह की उपेक्षित विरासत की ओर आकृष्ट कराना भी है। यह उनकी जिम्मेदारी है कि वह छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी से जुड़े विरासतों को संरक्षित करें, बजाय इसके कि वह प्रतीकात्मक रूप से इमारतों आदि का नामकरण कर खानापूर्ति करें।
तीसरा मकसद, अपने पाठकों को सोनाखान में आज की तारीख में चल रहे खनन माफियाओं के खेल के बारे में बताना भी है। राज्य के संरक्षण में चल रहे इस वैध-अवैध खनन से बड़ी संख्या में आदिवासी विस्थापित हो रहे हैं। हालांकि स्थानीय स्तर पर इसका विरोध भी होता रहा है, परंतु कुल मिलाकर स्थिति वही है जो वीर नारायण सिंह के जीवनकाल में थी।
अमर शहीद वीर नारायण सिंह के बारे में एक विवाद और भी है जिसके बारे में हम अपने पाठकों को स्पष्ट करना चाहते हैं। यह विवाद उनकी जातिगत पृष्ठभूमि से संबंधित है। शंकर गुहा नियोगी ने अपने यात्रा संस्मरण के प्रथम पृष्ठ में सोनाखान की सामाजिक पृष्ठभूमि का जिक्र करते हुए लिखते हैं कि सोनाखन “जंगलों के बीच एक आदिवासी बहुल गांव है। कंवर, धनहार, बिंझवार एवं गोंड़ जाति के लोग इस बस्ती में रहते हैं।”
आगे पृष्ठ 9 में वे उद्धृत करते हैं कि “[वीर] नारायण सिंह के पूर्वज गोंड जाति के थे। बताया जाता है कि इनके पूर्वज सारंगढ़ के जमींदार के वंश के हैं। गोंड़ मारू के डर से इनके पूर्वजों ने गोंड़ से बिंझवार जात में जाति परिवर्तन किया।”
इसी पृष्ठ के अंतिम अनुच्छेद में नियोगी लिखते हैं, “बताया जाता है कि नारायण सिंह के पूर्वज सारंगढ़ [से] में आए ‘विशाही ठाकुर’ सोनाखान जमींदारी वंश के पूर्वज थे। फते नारायण के समय में अंग्रेजों का कब्जा नहीं हो पाया था।”]