आगे भारतीय भारतीय महिलाओं में पीटी उषा के बारे में लिखिए
Answers
Answer:
दुनिया उसे ही याद रखती है, जो विजेता होता है। हारने वाले को कोई याद नहीं रखता। खेल की दुनिया में चमकने की कोशिश करने वाले खिलाड़ियों के साथ आम तौर पर यही होता आया है। लेकिन, पीटी उषा खेल की दुनिया की ऐसी मिसाल हैं, जिन्होंने इन सभी नियमों को उलट कर रख दिया। ठीक उसी तरह जैसे उन्होंने हिंदुस्तान में एक महिला होने की सभी सामाजिक बंदिशों को तोड़ा। 1984 के लॉस एंजेलेस ओलंपिक खेलों में चौथे नंबर पर आने के बावजूद, आज भी हिंदुस्तान में पीटी उषा का नाम एथलेटिक्स का पर्याय बना हुआ है। वो भारत की महानतम खिलाड़ियों में से एक मानी जाती हैं। पीटी उषा, न केवल खिलाड़ियों की कई पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनीं, बल्कि वो आज भी कई युवा एथलीटों के करियर को संवारने में अहम भूमिका निभा रही हैं। पीटी उषा का सफर उसी बाधा दौड़ जैसा रहा है, जैसी बाधा दौड़ में वो 1984 के ओलंपिक खेलों में शामिल हुई थीं। उनके जीवन और करियर में भी कई उतार-चढ़ाव आए।
1980 में केवल 16 बरस की उम्र में पीटी उषा ने मॉस्को में हुए ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों में हिस्सा लिया था. चार साल बाद वो किसी ओलंपिक खेल के फ़ाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला एथलीट बन गई थीं.
hope itz helpful.....☺️✌️