Hindi, asked by pktiwari1979, 7 months ago

आगाखां महल में खाने-पीने की कोई तकलीफ नहीं थी। हवा की दृष्टि से भी स्थान अच्छा था। महात्मा जी का साथ भी था किन्तु कस्तूरबा के लिए यह विचार ही असह्य हुआ कि मैं कैद में हूं। उन्होंने कई बार कहा मुझे यहां का वैभव कतई नहीं चाहिए। मुझे तो सेवाग्राम की कुटिया ही पसंद है। सरकार ने उनके शरीर को कैद रखा किन्तु उनकी आत्मा को वह कैद सहन नहीं हुई। जिस प्रकार पिंजड़े का पक्षी प्राणों का त्याग करके बंधनमुक्त हो जाता है, उसी प्रकार कस्तूरबा ने सरकार की कैद में अपना शरीर छोड़ा और वह स्वतंत्र हुई। उनके इस मूक किन्तु तेजस्वी बलिदान के कारण अंग्रेजी साम्राज्य की नींव ढीली हुई और हिंदुस्तान पर उनकी हुकूमत कमजोर हुई।

कस्तूरबा ने अपनी कृतिनिष्ठा के द्वारा यह दिखाई दिया कि शुद्ध और रोचक साहित्य के पहाड़ों की अपेक्षा कृति का एक कण अधिक मूल्यवान और आबदार होता है। शब्दशास्त्र में जो लोग निपुण होते हैं. उनको कर्तव्य-अकर्तव्य की हमेशा ही विचिकित्सा करनी पड़ती है। कृतिनिष्ठ लोगों को ऐसी दुविधा कभी परेशान नही कर पाती। कस्तूरबा के सामने उनका कर्तव्य किसी दीये के समान स्पष्ट था। कभी कोई चर्चा शुरू हो जाती तब मुझसे यही होगा और यह नहीं होगा- इन दो वाक्यों में अपना ही फैसला सुना देतीं।​

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Answered by kh5167131
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Answer:

it is so long I didn't understand

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