आगंतुक नामक जंतु कहानी
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आगंतुक एक जंतु (कहानी)
आगंतुक नाम का जंतु भी बड़ा अजीब प्राणी है। जब चाहे जिधर देखो अचानक आ जाता है। अब हमारे यहां ही ले लीजिए। हमारे यहां गांव से एक महाशय आ धमके। अचानक हम लोग सुबह-सुबह ऑफिस की तैयारी कर रहे थे। दरवाजे की घंटी बजी दरवाज़ा खोला तो सामने एक वृद्ध महाशय खड़े थे, मुस्कुराता हुआ चेहरा लिए हुये।
हम पहचान नहीं पाए, लेकिन वह हमारे गांव का नाम बता कर हमसे रिश्ता बताने लगे कि हम उनके रिश्ते में चाचा लगते हैं। बचपन में हम उनके घर खेला करते थे। क्या करें क्या ना करें, उन्हें घर में अंदर लेना पड़ा। हम दोनों पति-पत्नी का दफ्तर जाने का टाइम हो रहा था। अब किसी एक को अपने आज के दिन की कुर्बानी देनी थी। इसलिये पत्नी ने कुर्बानी दे दी और मैं दफ्तर चला गया। पत्नी दिन भर उनकी आवभगत करती रही। सोचा शाम तक चले जाएंगे। लेकिन क्या पता था वो हमारे तथाकिथत चाचा जी पूरा कार्यक्रम बना कर आए हैं।
शाम को वापस घर आया उनसे बातचीत हुई तो पता चला कि वह 15 दिन के प्रोग्राम से आए हैं। यह सुनकर ही दिल अंदर तक कांप गया। 15 दिन उनकी आवभगत करनी पड़ेगी। हम लोगों के पास समय नहीं अब क्या होगा। उन्हें इशारों इशारों में ही यह बात बता दी कि हम दोनों जॉब पर जाते हैं, घर पर कोई नहीं रहता। वह बोले ठीक है मैं घर पर अकेला जाया करूंगा, तुम लोग आराम से जॉब पर जाओ। यानि उनका जाने का कोई इरादा नही थी। अब उनको ना भी नहीं कह सकते थे।
उनका यही दिनचर्या बन गई। हम लोग रोज सुबह चले जाते और वह आराम से दिनभर मटरगश्ती करते हुए टीवी देखते। हम लोग खाना बनाकर रख जाते थे। वह मजे से खा लेते। घर से निकलने का नाम ही नहीं लेते। बोलते किसी आवश्यक काम से आए हैं लेकिन किसी भी दिन अपने किसी भी आवश्यक काम से नहीं गए। हम समझ गए वह केवल अपनी खातिरदारी कराने आए थे।
15 दिन बीत गये फिर भी जाने का नाम नहीं लें। तब हम लोगों ने एक आईडिया निकाला की हम लोगों ने अचानक कहा कि गांव से फोन आया है कि पिताजी की तबीयत खराब है। हमें जाना पड़ेगा। तब वह एकदम सकपका गए। वो बोले, ठीक है चलो चलते हैं, मैं पहले निकल लेता हूं तुम लोग आते रहना, और वह अपना बोरिया बिस्तर समेट कर चलते बने।
हमने चैन की साँस ली। ये आंगतुक नाम का जंतु भी बड़ा अजीब प्राणी है, जब देखो जहाँ जला जाता है, और फिर वापस जाने का नाम नही लेता।