Science, asked by shriyanshsingh306, 3 months ago

आहार जाल एवं आहार श्रृंखला में अंतर स्पष्ट कीजिए​

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Answered by divya8199
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Answer:

विभिन्न जैविक स्तरों पर भाग लेने वाले जीवों की शृंखला आहार शृंखला का निर्माण करती हैं। जीवों की वह शृंखला जिसमे हर एक चरण में पोषी स्तर का निर्माण होता है तथा जिसमे जीव एक दुसरे का आहार करते है। इसी प्रकार विभिन्न जैविक स्तर पर भाग लेने वाले जीवो की इस शृंखला को आहार शृंखला कहते है।

आहार जाल

विभिन्न आहार शृंखलाओं की लंबाई एवं जटिलता में बहुत अंतर होता है। आमतौर पर प्रत्येक जीव दो अथवा अधिक प्रकार के जीवों द्वारा खाया जाता है जो स्वयं अनेक प्रकार के आहार बनाते हैं। अतः एक सीधी आहार शृंखला के बजाय जीवों के मध्य आहार संबंध शाखान्वित होते हैं तथा शाखान्वित शृंखलाओं का एक जाल बनाते हैं जिससे ‘आहार जाल’ कहते हैं।

आहार शृंखला एवं जाल में अन्तर

1.आहार शृंखला में कई पोषी स्तर मिलकर इसका निर्माण करते है।

2. इसमें उर्जा के प्रवाह की दिशा एक रेखीय होती है।

3. आहार शृंखला सामान्यतः तीन अथवा चार चरण की होती है।

आहार जाल

1. कई आहार शृंखला मिलकर आहार जाल का निर्माण करती है।

2. इसमें उर्जा का प्रवाह शाखान्वित होता है।

3. यह एक जाल की तरह होता है जिसमे कई चरण होते है।

आहार शृंखला का प्रत्येक चरण अथवा कड़ी एक पोषी स्तर बनाते हैं। स्वपोषी अथवा उत्पादक जो की अपना भोजन स्वय बनाते है प्रथम पोषी स्तर हैं तथा सौर ऊर्जा का स्थिरीकरण करके उसे विषमपोषियों अथवा उपभोक्ताओं के लिए उपलब्ध कराते हैं। शाकाहारी अथवा प्राथमिक उपभोक्ता दूसरा पोषी स्तर बनाते है। छोटे मांसाहारी अथवा दूसरा उपभोक्ता मिलकर तीसरे पोषी स्तर बनाते है तथा बड़े मांसाहारी अथवा तृतीय उपभोक्ता चौथे पोषी स्तर का निर्माण करते हैं।

हम जानते हैं कि जो भोजन हम खाते हैं हमारे लिए ऊर्जा स्रोत का कार्य करता है तथा विभिन्न कार्यों के लिए ऊर्जा प्रदान करता है। अतः पर्यावरण के विभिन्न घटकों की परस्पर अन्योन्य क्रिया में निकाय के एक घटक से दूसरे में ऊर्जा का प्रवाह होता है। स्वपोषी सौर प्रकाश में निहित ऊर्जा को ग्रहण करके उसे रासायनिक ऊर्जा में बदल देते हैं। यह ऊर्जा संसार के संपूर्ण जैव समुदाय की सभी क्रियाओं के संपादन में सहायक होती है। स्वपोषी से ऊर्जा विषमपोषी एवं अपघटकों तक जाती है

जब ऊर्जा का एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तन होता है तो पर्यावरण में ऊर्जा की कुछ मात्रा का अनुपयोगी ऊर्जा के रूप में ह्नास हो जाता है। पर्यावरण के विभिन्न घटकों के बीच ऊर्जा के प्रवाह होता है

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