Hindi, asked by rahulnaik735220, 5 hours ago

आहुति कहानी की मूल भावना हजार शब्दों में​

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Answered by prachisrivastava957
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आहुति' कहानी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में प्रेमचंद द्वारा लिखी गयी एक महत्वपूर्ण कहानी है। 'आहुति' का अर्थ होता है हवन में डालने की सामग्री। जब यह कहानी लिखी गयी थी तब देश में स्वतंत्रता आंदोलन का विशाल हवनकुंड जल चूका था, जरूरत थी प्रत्येग वर्ग के आहुति की। प्रेमचंद ने इस कहानी के माध्यम से देश के एक बहुत बड़े वर्ग- छात्र वर्ग को प्रेरित किया है, इस आजादी के हवन में अपने तन,मन,धन की आहुति देने के लिए।

कहानी की कथावस्तु अत्यंत सुगठित है। इस कहानी में विश्वविद्यालय मे पढ़ने वाले तीन छात्रों-आनंद,विशम्भर, रूपमणि के माध्यम से कहानी का कथानक गढ़ा गया है। आनंद पैसे और बुद्धि से संपन्न था। विशम्भर इस मामले में पिछड़ा हुआ था। रूपमणि अपने स्वास्थ्य के कारण कॉलेज छोड़ चुकी है। इस बिच विशम्भर कांग्रेस का वोलेंटियर बन जाता है। आनंद उत्क्व इस निर्णय से आहत होता है और उसे समझने की कोसिस भी करता है, पर वह नही मानता।रूपमणि से भी वह उसके विषय में भला-बुरा कहता है।रूपमणि भी विशम्भर को समझने की कोसिस करती है, लेकिन असफल हो जाती है। विशम्भर के दृढ़ निश्चय का रूपमणि पर गहरा प्रभाव पड़ता है और उसके सामने गांधी की सजीव मूर्ति घूमने लगती है। विशम्भर का त्याग रूपमणि को पूरी तरह अपनी ओर खींच लेता है और वह रोज स्वराज भवन जाने लगती है। एकदिन विशम्भर आंदोलन करते हुए पकड़ा जाता है और उसे दो साल की सजा हो जाती है। इस पर आनंद और रूपमणि मे बहस होती है जिसपर रूपमणि कहती है- "विशम्भर ने जो दीपक जलाया है वह मेरे जीते जी बुझ न पाएगा।" यहाँ कहानी समाप्त हो

आहुति कहानी में संवाद बेहद सुगठित और कही-कही व्यंग्य की पैनि धार भी देखने को मिलती है। जहाँ रूपमणि और विशम्भर का संवाद है वहा सहजता और आकर्षण है। रूपमणि और आनंद के संवाद में व्यंग्य की धार भी देखने को मिलती है। आनंद-रूपमणि का एक संवाद यह द्रष्टव्य है-

अनंद- यह तुम्हारी निज की कल्पना होगी।

रूपमणि- तुमने अभी इस आंदोलन का साहित्य पढ़ा ही नही।

आनंद- न पढ़ा है , न पढ़ना चाहता हु।

रूपमणि- इससे राष्ट्र की कोई बड़ी हानि न होगी।

ऐसे संवाद कहानी मे रोचकता का सृजन करते है।

देश काल और वातावरण मि दृष्टि से यह कहानी आजादी के दौर की कहानी है। विभिन्न प्रकार के आंदोलन और बिचारो मे भी क्रन्तिकारी वातावरण है। शहरो से लेकर देहातो तक आंदोलन की गतिविधियां तेजी से बढ़ रही थी-" विशम्भर ने देहातो में ऐसी जाग्रति फैला दी है कि विलायत का एक सूत भी बिकने नही पाता।"

Explanation:

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