आह्वान साठी दोन शब्द
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हिंदी के बहुत से शब्दों का दुरुपयोग होता है, अक्सर बोलने में उनके मिलते-जुलते होने के कारण। ऐसा ही एक उदाहरण आवाहन और आह्वान का भी है। जैसा कि पहले कह चुका हूँ, हिंदी के बहुत से शब्दों का सत्यानाश आलसी मुद्रकों और अज्ञानी सम्पादकों ने भी किया है। संयुक्ताक्षर को सटीक रूप से अभिव्यक्त करने वाले साँचे के अभाव में वे उन्हें ग़लत लिखते रहे हैं, ह्व, ह्य, ह्र आदि भी कोई अपवाद नहीं। आह्वान का ह्व न होने की स्थिति में वे कभी आहवान तो कभी आवाहन छाप कर काम चला लेते थे। इस शब्द पर लिखने की बात पहले भी कई बार मन में आई लेकिन हर बार किसी अन्य अधिक महत्वपूर्ण प्राथमिकता के कारण पीछे छूट गई। गत एक जुलाई को 'भारतीय नागरिक-Indian Citizen' की पोस्ट पर निम्न प्रश्न देखा तो आज लिखने का योग बना:
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