History, asked by abdul4552, 11 months ago

aahat sikko ki visheshta batao​

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Answered by sahumeenal780
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Answer:

भारतवर्ष के सबसे प्राचीन सिक्के- "आहत सिक्के" ■

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मुद्रा के रूप में भारत मे सिक्कों का चलन लगभग ढाई हजार वर्ष से भी अधिक पुराना है। शुरुआत में सिक्कों को आज के सिक्कों की भांति सांचों में ढाला नही जाता था बल्कि धातु के टुकड़ों पर औजारों से प्रहार कर आकृतियां बनाई जाती थीं। इस तरह के सिक्के आहत सिक्के (पंचमार्क कॉइन) कहलाए। 500 ई.पू से 200 ई.पू में आहत सिक्के तत्कालीन जनजीवन में विनिमय के मुख्य स्रोत थे। प्रारंभ में चांदी के आहत सिक्के सर्वाधिक प्राप्त हुए हैं, बाद में तांबे और कांसे के आहत सिक्के भी मिलते हैं। इन सिक्कों का कोई नियमित आकार नहीं होता था, ये राजाओं द्वारा जारी किए जाते थे।

■आहत सिक्कों का शिल्प -

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आहत सिक्के धातु के टुकड़ों पर चिन्ह विशेष या ठप्पा मारकर या पीटकर बनाए जाते थे। आहत सिक्कों को धातु की अधिकर्णी पर हथौड़े से पीटा जाता था। बाद में कतरनी से उसके टुकड़े बनाए जाते थे और अंत में इन टुकड़ों पर बिंब टांक लगाई जाती थी। निर्माण की इस आहत (चोट) करने की पद्धति के आधार पर मुद्राविदों ने इन सिक्कों को आहत सिक्के नाम दिया। आहत सिक्कों पर प्राप्त आकृतियों में मछली, पेड़, मोर, यज्ञ वेदी, हाथी ,शंख, बैल, ज्यामितीय चित्र जैसे- वृत्त, चतुर्भुज, त्रिकोण तथा खरगोश आदि जंतु मिलते हैं। आहत सिक्कों की विशेषता यह थी कि इन पर लेख न होकर मात्र प्रतीक टंके होते थे। प्रारंभ में सिक्के केवल एक ओर ही टंके होते थे, बाद में सिक्कों पर दोनों ओर चिन्हों को अंकित किया जाने लगा था। ये प्राचीन कालीन आहत सिक्के बड़ी संख्या में देश के सभी भागों से मिलते हैं। अधिकांश आहत सिक्के उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद तथा बिहार के मगध से मिले हैं। आहत सिक्कों से ही व्यापार में सुदृढ और नवीन संवर्गो के उदय का मार्ग प्रशस्त हुआ था।

■ महाजनपदों में प्रचलित आहत सिक्के -

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यह आहत सिक्के चांदी और तांबे की परतों पर अंकित होते थे। यह कह पाना अभी संभव नहीं है कि इन जनपदों में से किसने सबसे पहले यह सिक्के प्रारंभ किए। प्रत्येक जनपद के सिक्कों की बनावट, आकृति, वजन, धातु और स्वरूप एक दूसरे से पर्याप्त भिन्नता पाई गई है।

●अश्मक महाजनपद के सिक्के मोटे तथा गोल आकृति के होते थे।

●पांचाल सिक्कों में प्रमुख चिन्ह- मत्स्य, वृष, हाथी सवार, प्रमुख थे।

●शूरसेन के सिक्कों पर बिल्ली या सिंह की आकृति मिलती है।

●गांधार के आहत सिक्के पूर्णता अलग पाए गए हैं, यह एक से पौने दो इंच लंबे वर्तुलाकार शलाका सरीखे हैं।

●वत्स, काशी, कौशल, मगध, कलिंग और आंध्र के सिक्कों पर चार-चार चिन्ह अंकित मिलते हैं ।

चांदी के सिक्के का निर्माण ईसा से पूर्व ही बंद कर दिया गया था परंतु इनका चलन अगले 500 वर्षों तक बना रहा। गुप्तों के उदय तक चांदी के सिक्के नहीं मिलते। आहत मुद्रा की छांप से युक्त एक सांचा एरण (सागर, मध्यप्रदेश) से मिलता है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में उल्लेख से पता चलता है कि उसके समय में तांबे के सिक्के भी प्रचलित थे। अधिकारियों को पण (जो कि चांदी की मुद्रा होती थी) द्वारा वेतन दिया जाता था।

धातु बदलती रही परंतु जिन सिक्कों पर चिन्हों का टंकण किया जाता था वे ही पंचमार्क या आहत सिक्के कहलाए।

इति।

Explanation:

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Answered by franktheruler
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आहत सिक्कों की विशेषताएं निम्नलिखित है

  • भारत में मुद्रा के रूप में सिक्कों चलन लगभग ढाई हजार वर्ष से अधिक पुराना है। प्रारंभिक दिनों में सिक्कों को आज की तरह सांचों में नहीं डाला जाता था। धातु के टुकड़ों पर औजारों से प्रहार कर विभिन्न आकृतियां बनाई जाती थी, इन सिक्कों को आहत सिक्कों के नाम से जाना गया।
  • आहत सिक्कों को पंचमार्क कॉइंस भी कहा जाता है। इन सिक्कों को धातु के हथोड़े से पीटकर फिर कतरनी टुकड़े बनाए जाते थे। अंत में टुकड़ों पर बिम्ब की टांक लगाई जाती थी।
  • आहत सिक्कों पर मछली, पेड़, मोर, हाथी, शंख, बैल, वेदी, यज्ञ आदि आकृतियां बनाई हुई होती थी। इन सिक्कों पर ज्यामितीय आकृतियां जैसे वृत्त , त्रिकोण, चतुर्भुज आदि भी बनाए जाते थे।
  • आहत सिक्कों की विशेषता यह थी कि इन सिक्कों पर लेख न होकर प्रतीक टंके लगे होते थे। बाद में दोनों ओर चिहनों को अंकित किया जाता था।
  • आहत सिक्के सभी देशों में मिलते है।
  • आहत सिक्कों के जरिए ही व्यापार कर नए मार्ग खुले थे।

#SPJ3

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