aahvahan kavita ki rachana swadinta aandolan ke doran ki gae thi
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जी, हां कविता आज भी उतनी ही प्रासंगिक है क्योंकि तब में और आज में अंतर तो हुए है पर चीज़े वैसी ही है और हालात और खराब। जातिवाद ,क्षेत्रवाद ,भाषावाद , और धर्म कि तमाम ऊँची -ऊँची दीवारों को तोड़कर ,उन्हें फांदकर। उंच -नीच , आमिर-गरीब , लिंग-भेद , रंग -भेद कि गहरी खायी को पाट कर। अपने दुःख -सुख व् निजी स्वार्थ से उठकर। आगे आयें और सुने , अपने कान लगाकर , अपने देश कि धड़कनो को। अपनी देशभक्ति और अपनी एकता के शंख नाद से लौटा सकते है इसकी चेतना। हम सब मिल-जुल कर , अपनी जान से भी प्यारे हिन्द -देश को , विकास के सबसे ऊँचे शिखर पर ले जाएँ। शांति ,भाईचारे , सर्व -धर्म -सम्मान , कि भावना जन-जन में जगाएं। खून चूसने वाली ज़हरीली दीमकों ,खटमलों से निजात दिलवाएं। हमारा कुछ फ़र्ज़ है इसके प्रति , यह हम भी याद रखें , और औरों को भी याद दिलवाएं। यह हमारा गौरव है , हमारी आन-बाण-शान है , फिर क्यों ना इस पर अपना तन-मन-धन कुर्बान करें। बड़ी फ़िक्र है गर हमें अपने हिन्द की तो बेहतर है इसके लिए कुछ करें।