आइए विचार करें
9. उन्नीसवीं सदी में भारतीय लौह प्रगलन उद्योग का पतन क्यों हुआ?
Answers
Answer with Explanation:
उन्नीसवीं सदी में भारतीय लौह प्रगलन उद्योग का पतन निम्नलिखित कारणों से हुआ :
(1) आरक्षित वनों में लोगों के प्रवेश पर रोक :
नए वन कानूनों के अंतर्गत भारत की ब्रिटिश सरकार ने आरक्षित वनों में लोगों के प्रवेश पर रोक लगा दी थी। इससे लोहा बनाने वाले कारीगरो को कोयले के लिए लकड़ी मिलनी मुश्किल हो गई। उनके लिए लौह अयस्क के स्रोत भी बंद हो गए । कुछ कारीगर चोरी छिपे लकड़ी इकट्ठी कर लाते थे परंतु हमेशा के लिए ऐसा करना संभव नहीं था। इसलिए उन्होंने अपना पेशा छोड़ दिया और अपनी रोजी रोटी के लिए नये साधन ढूंढने लगे।
(2) भारी कर :
कुछ क्षेत्रों में सरकार ने लोगों को जंगलों में प्रवेश की आज्ञा तो दे दी थी। परंतु लोहा पिघलाने वाले कारीगरों को अपनी प्रत्येक भट्टी के लिए वन विभाग को भारी कर देना पड़ता था । इसस उनकी आय कम हो जाती थी। इसलिए उन्होंने अपना काम बंद कर दिया।
आशा है कि यह उत्तर आपकी अवश्य मदद करेगा।।।
इस पाठ से संबंधित कुछ और प्रश्न :
आइए विचार करें
8. ब्रिटेन में कपास उद्योग के विकास से भारत के कपड़ा उत्पादकों पर किस तरह के प्रभाव पड़े?
https://brainly.in/question/11392631
आइए विचार करें 7. इंग्लैंड के ऊन और रेशम उत्पादकों ने अठारहवीं सदी की शुरुआत में भारत से आयात होने वाले कपड़े का विरोध क्यों किया था?
https://brainly.in/question/11391896
Answer:
(1) आरक्षित वनों में लोगों के प्रवेश पर रोक :
नए वन कानूनों के अंतर्गत भारत की ब्रिटिश सरकार ने आरक्षित वनों में लोगों के प्रवेश पर रोक लगा दी थी। इससे लोहा बनाने वाले कारीगरो को कोयले के लिए लकड़ी मिलनी मुश्किल हो गई। उनके लिए लौह अयस्क के स्रोत भी बंद हो गए । कुछ कारीगर चोरी छिपे लकड़ी इकट्ठी कर लाते थे परंतु हमेशा के लिए ऐसा करना संभव नहीं था। इसलिए उन्होंने अपना पेशा छोड़ दिया और अपनी रोजी रोटी के लिए नये साधन ढूंढने लगे।
(2) भारी कर :
कुछ क्षेत्रों में सरकार ने लोगों को जंगलों में प्रवेश की आज्ञा तो दे दी थी। परंतु लोहा पिघलाने वाले कारीगरों को अपनी प्रत्येक भट्टी के लिए वन विभाग को भारी कर देना पड़ता था । इसस उनकी आय कम हो जाती थी। इसलिए उन्होंने अपना काम बंद कर दिया।
Explanation: