आई सीधी राह से ,गई न सीधी राह,
सुषुम सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह।
ज़ेब टटोली कौड़ी ना पाई
माँझी को दूँ क्या उतराई ।
Answers
प्रस्तुत पंक्तियां कवियित्री ‘ललद्यद’ द्वारा रचित ‘वाख’ की हैं।
इन पंक्तियों में कवियित्री ‘ललद्यद’ ने अपनी निराशा को व्यक्त किया है। उन्हें पाश्चात्ताप हो रहा है। उनके पास परमात्मा से मिलन का सीधा, सच्चा एवं सरल मार्ग था और वो मार्ग था, भक्ति का मार्ग परन्तु उन्होंने हठयोग जैसे कठिन मार्ग को चुना। अर्थात उन्होंने सुषुम्ना नाड़ी द्वारा कुंडलिनी को जाग्रत कर प्रभु को पाने का मार्ग चुना। वह निरंतर प्रयास करती रही परंतु अपने इस प्रयास में वह लगातार असफल होती रही। धीरे-धीरे उनकी आयु बढ़ती गई और उनका पूरा जीवन यूं ही बीत गया, लेकिन न तो वह अपनी कुंडलिनी को जाग्रत कर पायीं और ना ही वह प्रभु को नहीं पा सकीं। तब उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ कि वो गलत मार्ग पर थीं। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। वो जीवन के अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुकी थीं। उन्होंने अपने जीवन में पीछे मुड़कर देखा तो पाया कि उन्होंने कुछ भी उल्लेखनीय हासिल नही किया। कोई ऐसा अच्छा काम नहीं किया जिस पर गर्व कर सकें। उन्हें एहसास होता है कि परमात्मा से मिलन के लिए भक्ति का मार्ग की श्रेष्ठ होता है। इस बात का पश्चाताप हो रहा है कि जब वह परलोक पहुंचेगी तो उनके पास अपने पुण्य कर्म के रूप में कुछ नहीं होगा और वह परमात्मा को क्या मुंह दिखाएंगी। उन्हें क्या देंगी। उन्हें क्या बताएंगी कि उन्होंने जीवन में क्या किया। उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी यूं ही बिता दी और कोई भी पुण्य का कार्य नही किया।
Answer:
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Explanation:
प्रस्तुत पंक्तियां कवियित्री ‘ललद्यद’ द्वारा रचित ‘वाख’ की हैं।
इन पंक्तियों में कवियित्री ‘ललद्यद’ ने अपनी निराशा को व्यक्त किया है। उन्हें पाश्चात्ताप हो रहा है। उनके पास परमात्मा से मिलन का सीधा, सच्चा एवं सरल मार्ग था और वो मार्ग था, भक्ति का मार्ग परन्तु उन्होंने हठयोग जैसे कठिन मार्ग को चुना। अर्थात उन्होंने सुषुम्ना नाड़ी द्वारा कुंडलिनी को जाग्रत कर प्रभु को पाने का मार्ग चुना। वह निरंतर प्रयास करती रही परंतु अपने इस प्रयास में वह लगातार असफल होती रही। धीरे-धीरे उनकी आयु बढ़ती गई और उनका पूरा जीवन यूं ही बीत गया, लेकिन न तो वह अपनी कुंडलिनी को जाग्रत कर पायीं और ना ही वह प्रभु को नहीं पा सकीं। तब उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ कि वो गलत मार्ग पर थीं। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। वो जीवन के अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुकी थीं। उन्होंने अपने जीवन में पीछे मुड़कर देखा तो पाया कि उन्होंने कुछ भी उल्लेखनीय हासिल नही किया। कोई ऐसा अच्छा काम नहीं किया जिस पर गर्व कर सकें। उन्हें एहसास होता है कि परमात्मा से मिलन के लिए भक्ति का मार्ग की श्रेष्ठ होता है। इस बात का पश्चाताप हो रहा है कि जब वह परलोक पहुंचेगी तो उनके पास अपने पुण्य कर्म के रूप में कुछ नहीं होगा और वह परमात्मा को क्या मुंह दिखाएंगी। उन्हें क्या देंगी। उन्हें क्या बताएंगी कि उन्होंने जीवन में क्या किया। उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी यूं ही बिता दी और कोई भी पुण्य का कार्य नही किया।