आई सीधी राह से, गई न सीधी राह।
सुषुम-सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह!
जेब टटोली, कौड़ी न पाई।
माझी को दें, क्या उतराई?
please give me sandarbh Vyakhya and Prasang please help me please please please it's very urgent
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this your answer dear.
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आई सीधी राह से, गई न सीधी राह।
सुषुम-सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह!
जेब टटोली, कौड़ी न पाई।
माझी को दें, क्या उतराई?
solution is in pic.
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- प्रस्तुत वाख में कवयित्री ललद्याद ने अपने मन का पश्चाताप उजागर किया है।
- उन्होंने सरल भक्ति का मार्ग अपनाने के बजाय अपनी आत्मा को परमात्मा से मिलाने के लिए हठ योग का सहारा लिया। यानी भक्ति की सीढ़ी पर न चढ़कर सुषुम्ना नाड़ी (कुंडलिनी) को जगाकर सीधे हठ योग के जरिए अपने और भगवान के बीच एक सेतु (पुल) बनाना चाहती थीं।
- लेकिन इस प्रयास में वह हमेशा असफल रहीं। इस प्रयास में उनकी उम्र धीरे-धीरे बीतती गई। जब तक उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ, तब तक उसके जीवन की शाम हो चुकी थी, यानी मृत्यु का समय निकट था। कुछ और करने के लिए समय नहीं बचा था।
- जब उन्होंने अपने जीवन का लेखा-जोखा किया तो पाया कि उनके पास कुछ भी नहीं है, उनकी हालत भिखारी जैसी है। अब उन्हें भगवान से मिलने के लिए भवसागर पार करना होगा।
- वह क्या देंगी जब भगवान उनसे भवसागर पार कराने के लिए खेवई या पार-उतराई के रूप में पुण्य कर्म माँगेंगे ? उन्होंने अपना पूरा जीवन हठ योग में बिताया है। उन्हें अपनी हालत पर बहुत अफ़सोस हो रहा है। वह पछता रहीं है।
- परन्तु कहते है ना-
"अब पछताए होत का , जब चिड़िया चुग गई खेत।"
#SPJ2
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