Aaj Bharat me kin natik mulyo ka Palan Hota Hai
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नैतिक मूल्य अर्थात ईमानदारी, सच्चाई, बड़ो का आदर, सच्ची मित्रता इत्यादि। अगर आप देश मे इन नैतिक मूल्यों को खोजेंगे तो पाएंगे कि मुश्किल से 10% या उससे भी कम जनता इन सभी नैतिक मूल्यों का पालन करती है। कारण - "बढ़ती शिक्षा, घटता संस्कार"। जब से अंग्रेज़ों ने भारतीय शिक्षा को हटाकर अपनी शिक्षा प्रलाणी लायी है, तबसे भारतीय भी विदेशी शिक्षा में रच बस गए है।
भारतीय इतिहास को उठाकर देखा जाए तो बहुत ही काम ऐसे उदाहरण मिलेंगे जिसमे ये ज़िक्र होगा कि किसी भारतीय मूल के व्यक्ति ने अपनी सगी माँ या बाप को मार डाला। वहीं आजकल, ये तो एक आम बात हो गयी है। इन नैतिक मूल्यों का पालन न कर पाने के पीछे सिर्फ अंग्रेज़ी शिक्षा प्रलाणी का ही दोष नही बल्कि उन अभिभावकों का भी दोष है जो कि अपने बच्चे को सही समय पर सही संस्कार नही दे पाते। कारण? वो अपनी दिनचर्या में खुद को इतना व्यस्त पाते है कि अपने बच्चों को समय नही दे पाते। देखा जाए तो उनके पास समय निकालने के बहुत अवसर है पर वो उन अवसरों का लाभ सोने या मनोरंजन में निकाल देते हैं और बाद में, वही बालक उनके प्राण निकाल देता है।
मैं कहूंगा कि इनमें बालको का भी उतना ही दोष है जितना अभिभावकों का। बालकों को चाहिए कि इन नैतिक मूल्यो को अपने जीवन मे उतारने का प्रयास करें बजाय इसके की उसे अपनी पुस्तिका में उतारे। अगर ऐसा ही हाल रहा तो वह दिन दूर नही जब अभिभावक अपने ही बच्चों से इतना डरेंगे की उसपर इतनी पाबंदी लगा देंगे जिससे न तो वह बच्चा खुश रह पाएगा, न ही अभिभावक।
आज भारत को अगर विकसित करना है तो हमे इन नैतिक मूल्यो क् पालन करना अवश्य सीखना होगा।
धन्यवाद
भारतीय इतिहास को उठाकर देखा जाए तो बहुत ही काम ऐसे उदाहरण मिलेंगे जिसमे ये ज़िक्र होगा कि किसी भारतीय मूल के व्यक्ति ने अपनी सगी माँ या बाप को मार डाला। वहीं आजकल, ये तो एक आम बात हो गयी है। इन नैतिक मूल्यों का पालन न कर पाने के पीछे सिर्फ अंग्रेज़ी शिक्षा प्रलाणी का ही दोष नही बल्कि उन अभिभावकों का भी दोष है जो कि अपने बच्चे को सही समय पर सही संस्कार नही दे पाते। कारण? वो अपनी दिनचर्या में खुद को इतना व्यस्त पाते है कि अपने बच्चों को समय नही दे पाते। देखा जाए तो उनके पास समय निकालने के बहुत अवसर है पर वो उन अवसरों का लाभ सोने या मनोरंजन में निकाल देते हैं और बाद में, वही बालक उनके प्राण निकाल देता है।
मैं कहूंगा कि इनमें बालको का भी उतना ही दोष है जितना अभिभावकों का। बालकों को चाहिए कि इन नैतिक मूल्यो को अपने जीवन मे उतारने का प्रयास करें बजाय इसके की उसे अपनी पुस्तिका में उतारे। अगर ऐसा ही हाल रहा तो वह दिन दूर नही जब अभिभावक अपने ही बच्चों से इतना डरेंगे की उसपर इतनी पाबंदी लगा देंगे जिससे न तो वह बच्चा खुश रह पाएगा, न ही अभिभावक।
आज भारत को अगर विकसित करना है तो हमे इन नैतिक मूल्यो क् पालन करना अवश्य सीखना होगा।
धन्यवाद
sanugamu:
thanksss a lott u rockk
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