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भारतीय लोकतंत्र और वर्तमान राजनैतिक परिवेश में आज के राजनेताओं की भूमिका
भारतीय लोकतंत्र और वर्तमान राजनैतिक परिवेश में आज के राजनेताओं की भूमिकाExplanation:
आजादी की लड़ाई जब अंग्रेजों से लड़ी जा रही थी तो उस वक्त भी हमारे देश में कई विचार धारा के स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता हुआ करते थे उनमें वैचारिक विरोधाभास हुआ करता था लेकिन उद्देश्य सबका एक था कि हमें अपने देश को आजाद कराना है स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जब इस देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू जी हुए तो उस वक्त देश के नवनिर्माण के लिए नेहरू जी ने सभी नेताओं के सहयोग से एक मजबूत भारत का सपना देखा जिसमें उनको अपेक्षित सफलता भी मिली ।
जब भारतीय लोकतंत्र के पवित्र मंदिर लोकसभा या राज्यसभा में बहस होती थी तो एक दूसरे दल और उसके नेता की नीतियों तथा सरकार के खामियों को लेकर सदन के अंदर तीखी बहस होती थी और सबका उद्देश्य एक ही होता था कि हमारा देश कैसे मजबूत और स्वावलंबी हो जिसमें देश की जनता के भलाई का निहितार्थ समाहित होता था ।
लेकिन आज के भारतीय लोकतंत्र में राजनीति और राजनेताओं के सोच में काफी गिरावट आ गई है न वह लोकतंत्र रह गया है नहीं वैसे राजनेता रह गये हैं क्योंकि राजनीति का पूर्ण से अपराधिकरण हो गया है लोकतंत्र के पवित्र मंदिर में अपराधी राजनेताओं की बाढ सी आ गई है जब भी सदन के अंदर राष्ट्रीय हित अथवा जनहित के मुद्दे पर बहस होती है तो वह जनप्रतिनिधि एक दूसरे के उपर टूट पड़ते हैं और सदन स्थगित हो जाता है जिससे कि हमारा लोकतंत्र ही खतरे में पड़ जाता है उसके लिए कुछ हद हमारे देश की जनता भी जिम्मेदार है क्योंकि जनता ने अपराधियों को अपना जन प्रतिनिधि बनाकर सदन में भेजा है आज की राजनीति में न तो शुचिता बची है नहीं सुचरिता आज वर्तमान राजनीति में ऐनकेन प्रकरण के तहत गलत रास्ते से धन संग्रह करने की होड़ सी मची है उसका एक प्रमुख कारण है कि हमें चुनाव जीतना है चाहे जो भी हथकंडा अपनाना पड़े उससे कोई भी राजनीतिक पार्टी या राजनेता अछूता नहीं है यदि इसी तरह की विकृत की दिशा और दशा बनी रही तो इस देश और भारतीय लोकतंत्र का भगवान ही मालिक है।
जय हिन्द
by my mama