Aaj ke yug me kahani ka auchitya
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रमेश गौड़ : यान्त्रिकताजन्य जिस ह्यूमन क्राइसिस का सामना जिस स्तर और गहराई पर सार्त्र, कामू और काफ्का आदि पश्चिमी कथाकारों को करना पड़ा था, क्या समकालीन हिन्दी-कहानीकार भी उसी स्तर और गहराई पर कर रहा है?-और अगर हाँ, तो वह उससे मुक्ति पाने की दिशा में क्या हल पेश करना चाहता है, या कर रहा है?
भीष्म साहनी : इस युग को तकनीकी युग की संज्ञा देना तो ठीक है, पर इस युग की समस्याओं को तकनीकजनित मानना ग़लत है। जिस ह्यूमन क्राइसिस का आपने ज़िक्र किया है, वह यान्त्रिकताजन्य नहीं है। पिछले दो विध्वंसकारी महायुद्धों का भी मूल कारण तकनीक या यान्त्रिकी नहीं था। तकनीक बोतल से निकला वह 'जिन्न' नहीं है, जो एक बार निकलकर मनुष्य के नियन्त्रण से बाहर हो जाए और मानव-जाति के लिए संकट खड़ा कर दे। तकनीक के कारण जीवन की परिस्थितियाँ बदली हैं, लेकिन तकनीक मूलत: मानवीय सम्बन्धों की शत्रु नहीं है। हमारे अपने देश में हमारी समस्याएँ क्या यान्त्रिकताजन्य हैं? क्या हमारी आबादी की समस्या तकनीक-जनित है?-और क्या हम बिना तकनीक के अपनी समस्याओं को हल कर पाएँगे? तकनीक के कारण संकेन्द्रण बढ़ा है,विध्वंसकारी हथियार भी बढ़े हैं, पर तकनीक के कारण मनुष्य सितारों के बीच भी जा पहुँचा है, तकनीक से मानव-जीवन को अधिक सुखी बनाने की सम्भावनाएँ भी बढ़ी हैं।
इसके अतिरिक्त, दूसरे महायुद्ध के परिणामों और नए युद्ध की आशंका से पीडि़त पश्चिमी यूरोप की जनता की मन:स्थिति और सदियों की दासता की $जंजीरों को तोडक़र उठ रहे अफ्रीका की जनता की मन:स्थिति क्या एक-सी है? मैं नहीं मान सकता कि दो सौ साल पुरानी औद्योगिक सभ्यता वाले जर्मनी और सत्रह साल के औद्योगिक प्रयासों वाले भारत का वातावरण, जीवन की गति और अनुभव आदि एक से होंगे।
भीष्म साहनी : इस युग को तकनीकी युग की संज्ञा देना तो ठीक है, पर इस युग की समस्याओं को तकनीकजनित मानना ग़लत है। जिस ह्यूमन क्राइसिस का आपने ज़िक्र किया है, वह यान्त्रिकताजन्य नहीं है। पिछले दो विध्वंसकारी महायुद्धों का भी मूल कारण तकनीक या यान्त्रिकी नहीं था। तकनीक बोतल से निकला वह 'जिन्न' नहीं है, जो एक बार निकलकर मनुष्य के नियन्त्रण से बाहर हो जाए और मानव-जाति के लिए संकट खड़ा कर दे। तकनीक के कारण जीवन की परिस्थितियाँ बदली हैं, लेकिन तकनीक मूलत: मानवीय सम्बन्धों की शत्रु नहीं है। हमारे अपने देश में हमारी समस्याएँ क्या यान्त्रिकताजन्य हैं? क्या हमारी आबादी की समस्या तकनीक-जनित है?-और क्या हम बिना तकनीक के अपनी समस्याओं को हल कर पाएँगे? तकनीक के कारण संकेन्द्रण बढ़ा है,विध्वंसकारी हथियार भी बढ़े हैं, पर तकनीक के कारण मनुष्य सितारों के बीच भी जा पहुँचा है, तकनीक से मानव-जीवन को अधिक सुखी बनाने की सम्भावनाएँ भी बढ़ी हैं।
इसके अतिरिक्त, दूसरे महायुद्ध के परिणामों और नए युद्ध की आशंका से पीडि़त पश्चिमी यूरोप की जनता की मन:स्थिति और सदियों की दासता की $जंजीरों को तोडक़र उठ रहे अफ्रीका की जनता की मन:स्थिति क्या एक-सी है? मैं नहीं मान सकता कि दो सौ साल पुरानी औद्योगिक सभ्यता वाले जर्मनी और सत्रह साल के औद्योगिक प्रयासों वाले भारत का वातावरण, जीवन की गति और अनुभव आदि एक से होंगे।
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