आज आदमी धन के पीछे अधाधुध दौड़ रहा है। पाँच रुपए मिलने पर दस, दस मिलने पर सौ और
सौ मिलने पर हजार की लालसा लिए वह इस अंधी दौड़ में शामिल है। धन की इस दौड़ का कोई
अत नहीं। इसमें सभी पारिवारिक और मानवीय संबंध पीछे छूट गए । व्यक्ति सत्य-असत्य , उचित-
अनुचित, न्याय-अन्याय और अपने-पराए में फर्क को भी भूल गया है। उसके पास अपने परिवार के
लिए भी समय नहीं। धन की लालसा व्यक्ति को गलत कार्य करने के लिए उकसाती है। इस
लालसा का ही परिणाम है कि जगह-जगह अपराध बढ़ रहे हैं । इस रोगी मनोवृत्ति को बदलने के
लिए हमें हर स्तर पर प्रयत्न करने होंगे।
(ग) इस गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए
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20 रु वो अगली बार लेगा
Explanation:
थदभथतड झझडरडझ़यथभदश्रक्षहक्ष़ थथंगरह
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धन नहीं है सब कुछ!
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