Hindi, asked by vinaykashyap417, 3 months ago

आज हम विनम्रता की भावना की आवश्यकता है। हमें यह फल त्याग देना
चाहिए कि हम तोक है और हमारे विरोधी गलत हैं या यह कि हप जानते हैं कि हम
पूर्ण महा। परन बिरिया रूप से अपने शत्रुओं से अच्छे हैं। वर्षों से सामूहिक बध
देखते देखते हम निष्ठुर हो गए हैं और भयानकताओं को देख दुखका कठोर हो गए
है। बहुत उन्नत राष्ट्रों में बड़ी मात्रा में बर्बरता है और बहुत पिछड़ी जातियों में भी
सभाता का काफी बड़ा अंश है । एक जमाने में मध्यता बाहर से बर्वस द्वारा नष्ट कर टी
गई थी पर हमारे समय में इस बात की संभावना है कि वे अंदर से उन चरा द्वारा नष्ट
कर दी जाएगी जिनमें हम पैदा कर रहे हैं। प्रोद्योगिकीव क्रांति के समतुल्य एक नैतिक
क्रांति करनी पड़ेगी । हमें नूतन मानवीय सम्बन्धों का विकास करना ही पड़ेगा और राष्ट्री
की बोद्धिक संघटना तथा नतिक ऐक्य को प्रोत्साहित करना ही होगा। सरकार को भी
एक हृदय, एक अंत:करण, एक भावना-कि हम सब जाति और बाग के बचना सपो
एक ही बिरादरी के सदस्य हैं-का विकास करना चाहिए।
यदि विश्व निष्ठा की भावना बढ़ानी है, तो हमें जीवन की दूसरी परम्पराओं से
गुण ग्रहण की वृत्ति पैदा करनी होगी। यह देश बहुत दिनों से अनेक संस्कृतियो-आर्य,
दविड़, हिंदू, बौद्ध, यहूदी, पारसी, मुसलमानी और खिष्टीय का मिलन स्थल है। आज
जब संसार सिकुड़ता जा रहा है, तो सभी जाति एवं संस्कृतियों के इतिहास हमारे अध्ययन
के विषय बनने चाहिए। यदि हम एक-दूसरे को ज्यादा अच्छी तरह जानना चाहते हैं, तो
हमें अपने अलगाव को वृत्ति और बड़प्पन की भावना छोड़ देनी चाहिए और मान लेना
चाहिए कि दूसरी संस्कृतियों के दृष्टिकोण भी उतने ही उचित हैं और उनका प्रभाव भी
उतना हो शक्तिमान है, जितना हमारा है। मानव जाति के इतिहास के इस संकटकाल में
हमें मानवीय प्रकृति को पुन: नूतन ढंग पर गठित करने की आवश्यकता है । इस सम्बन्ध
में प्राच्य पाश्चात्य अवबोध के लिए 'यूनेस्को' जो मूल्यवान कार्य कर रहा है, उसकी
हम प्रशंसा करते हैं।
शीर्षक बताईये ?

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Answered by mollanijam601
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Answer:

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