आज
का
इंसान मशीनों
का गुलाम बन गया है।
अपने विचार
लिखित
इस पर
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वर्तमान युग औद्योगिकीकरण और मशीनीकरण का युग है। जहां आज हर काम को सुगम और सरल बनाने के लिए मशीनों का उपयोग होने लगा है वहीं पर्यावरण का उल्लंघन भी हो रहा हैं। ना ही पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान दिया जा रहा है और ना ही प्रकृति द्वारा प्रदत्त अमूल्य तत्वों का सही मायने में उपयोग किया जा रहा है। परिणामस्वरूप प्रकृति कई आपदाओं का शिकार होती जा रही है।पर्यावरण ईश्वर प्रदत्त एक ऐसा तोहफा है जिसका मनुष्य द्वारा मूल्य निर्धारण करना असंभव है। यदि मानव समाज प्रकृति के नियमों का भलीभांति अनुसरण करें तो उसे कभी भी अपनी मूलभूत आवश्यकताओं में कमी नहीं रहेगी। वर्तमान समय में मनुष्य औद्योगिकीकरण और नगरीकरण में इस तरह से गुम हो चुका हैं कि वह स्वार्थपूर्ति के लिए प्रकृति का अत्यधिक दोहन करने लगा है और दिन ब दिन पर्यावरण को असंतुलित बनाता जा रहा है।
आज का आदमी देर रात तक कामधंधे या नौकरी से लौटता है। सुबह देर से उठता है और फिर सारा दिन वाहनों, कम्प्यूटरों, रेडियो, टीवी, मोबाइल फोन के कृत्रिम सम्पर्कों में उलझा रहता है। कोशिश करके जिम वगैरह जाकर सेहत बनाने की कोशिश करता है तो भी सांस तो इसी वातावरण में लेनी है। जितना धुंआ उसकी कार फेंकती है उतना ही धुंआ प्रतियोगिता में उसके पड़ोसियों के वाहन से निकलती है। इस तरह आज के मनुष्य ने अपने लिए नर्क खुद ही गढ़ रखा है।