Hindi, asked by santoshkumar809122, 4 hours ago

आज के जमाने में कई बार हमें परोपकार महंगा पड़ जाता है आपके विचार से यह कहां तक सही है ? ​

Answers

Answered by shlokmehta240
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Explanation:

परोपकार का अर्थ है औरों का उपकार। यदि हम अपने चारों ²ष्टि डालें तो प्रकृति में प्रत्येक तत्व परोपकार करता ²ष्टिगोचार होता है। कहा भी गया है तरुवर फल नहीं खात है, नदी न संचै नीर। परमारथ के करने, साधु न धरा शरीर।। यानि वृक्ष कभी अपना फल नहीं खाते, नदियां मनुष्य, पशु पक्षी, एवं पेड़ पौधों को जीवन देने के लिए निरंतर बहती रहती है। सूर्य प्रत्येक दिवस ऊर्जा प्रदान करने के लिए उदित होता है। हवा, प्राण, वायु बनकर सभी को नवजीवन प्रदान करती है। रात में चन्द्रमा शीतलता प्रदान करता है अर्थात केवल अपना सोचना व अपने परिवार के बारे में विचार करना एक संकुचित सोच है। जिसकों व्यापक करने की नितांत आवश्यकता है।

आज हमें अपने चारों ओर सांस्कृति व संस्कार का अभाव, असहिष्णुता, अपराध, व्याभिचार एवं बुजुर्गों के प्रति असम्मान जैसे दुर्गुण हमारे समाज में व्याप्त होते चले जा रहे हैं। हमारी भारतीय संस्कृति का आधार, उदार एवं उदात्त एवं पवित्र हैं। हमें जहां भी दर्द पीड़ा एवं कठिनाइयां दिखाई पड़ती हैं। हम तुरंत नि:स्वार्थ भाव से सेवा के लिए तत्पर हो जाते हैं। भारतीय संस्कृति एवं प्रत्येक धर्म, व्रत एवं रोज के तौर में यह संदेश देता है कि हम सीमित साधनों में भी जीवन बसर करके दूसरों के लिए अन्न त्याग करें, जिससे निम्न वर्ग को भी यह आसानी से उपलब्ध हो सके। हमारी सांस्कृतिक विरासत को प्रचलित राजनीति ने दूषित कर दिया है। जिसके कारण जो उदार, उदात्त भावनाएं हमारी संस्कृति की मूल आधार थीं, वे क्षीण हो रही हैं। ऐसी स्थिति में शिक्षण संस्थाओं का दायित्व और भी अधिक बढ़ जाता है। हमें देश की आने वाली पीढ़ी को डा. राजेन्द्र प्रसाद, महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानंद, रवीन्द्र नाथ टैगोर, डा. एपीजे अब्दुल कलाम जैसे उदार एवं उदात्त व्यक्तित्वों से प्रेरणा लेते हुए आत्म हित नहीं, बल्कि राष्ट्रहित के बारे में विचार करना होगा। भारतवर्ष पुन: अपना विश्व गुरु का दर्जा अर्जित कर साधु एवं मनीषियों की दिखाई पवित्र राह पर अग्रसारित हो सके। बच्चे संस्कारी हो, यही हमारी संस्था का मूलमंत्र है।

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