आज का मानव जीवन समस्याओं से घिरा है। समस्याएँ आज मानव जीवन का पर्याय बन गई है। ये समस्याएं ही उसकी प्रगति का मार्ग प्रशस्त करती हैं। समस्याओं का समाधान करने में ही उसका श्रेष्ठतम रूप उभरकर सामने आता है। पुराणों में इस प्रकार की अनेक कथाएँ मिलती हैं जो शिक्षा देती हैं कि मनुष्य जीवन की हर स्थिति में सीखे व समस्या उत्पन्न होने पर उसके समाधान का उपाय सोचें। जो व्यक्ति जितना उत्तरदायित्व वाला कार्य करेगा, उतनी ही उसके समक्ष समस्याएं आएंगी। महत्वपूर्ण बात तो यह है कि प्रत्येक संघर्ष के गर्भ में विजय निहित रहती है। संघर्ष से विमुख होना, लौकिक और पारलौकिक सभी दृष्टियों से अहितकर है, मानव धर्म के प्रतिकूल है। अतः आप उठिए, दृढ़ संकल्प, उत्साह और साहस के साथ संघर्ष रूपी विजय-रथ पर चढ़ कर अपने जीवन के विकास में विघ्नरूपी शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर अपना जीवन खुशियों से भर लीजिए। क. विजय का निवास कहां होता है? 1 a) लक्ष्य में b) आकांक्षा में c) कर्म की इच्छा में d) संघर्ष में ख. मनुष्य का श्रेष्ठतम रूप कब उभर कर सामने आता है? 1 a) संघर्ष में पिसकर b) कर्म करते रहने में c) समस्याओं को सुलझाने में d) संघर्ष से दूर भाग कर ग. 'अनुकूल'का विलोम शब्द क्या है? 1 a) प्रतिकूल b) लौकिक c) संघर्ष d) पारलौकिक घ. इस गद्यांश के लिए सर्वाधिक उपयुक्त शीर्षक क्या हो सकता है? 1 a) संघर्ष एक अभिशाप b) समस्या पर विजय c) संघर्ष ही सफलता का आधार d) संघर्ष और समस्या च. हम अपने जीवन को खुशियों से कैसे भर सकते हैं? 1 a) खूब धन कमाकर b) खूब पढ़ लिख कर c) बाधा रूपी शत्रु पर विजय प्राप्त कर d) विदेश जाकर
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I don't know
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i don't know
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bhai mai bhi nai likha hu likhuga to bata dunaga waise kon sa section or state h apka
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