आज की नारी पुरुष पर भारी विषय पर वाद-विवाद के लिए पक्ष या विपक्ष में अपने विचार 300 शब्दों में प्रकट करें|
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ND
यह शायद आधी आबादी से जुड़ा कड़वा सच है। कहने को हम आधुनिक तो हुए लेकिन महिलाओं के लिए हमने अब भी हदें तय कर रखी हैं। कहीं कुछ गलती खुद महिलाओं की भी है। हम 100 में से केवल 2 या 4 अपवादों के बूते पर समूचे नारी वर्ग को स्वतंत्र कैसे परिभाषित कर सकते हैं भल ा?
पिछले दशकों में नारी शिक्षा और स्वाधीनता ने जो जोर पकड़ा उसके क्रांतिकारी परिणाम सामने आए और घर की चहारदीवारी से बाहर निकलकर महिलाओं ने उच्च शिक्षा प्राप्त करना और विभिन्ना पदों पर आसीन होना प्रारंभ कर दिया है। अब महिलाओं ने देश के आर्थि क, राजनीतिक और सामाजिक विकास में भी अपनी महती भूमिका का निर्वहन करना प्रारंभ कर दिया है। फलस्वरूप उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा में भी बदलाव आया। नारी चेतना के स्वर मुखरित हुए और नारी स्वातंत्र्य आंदोलनों ने जोर पकड़ा। किंतु प्रश्न उठता है कि क्या इस आंदोलन तथा नारीस्वाधीनता के मायने पूर्णरूपेण सफल हु ए?
यदि हम इस प्रश्न पर गौर फरमाएँ तो एक तथ्य सामने आता है कि पुरुष प्रधान समाज में अब भी नारी की स्थिति दोयम दर्जे की ही है। इतना अवश्य है कि शिक्षा एवं नारी जागृति के फलस्वरूप नारी की स्थिति में सुधार हुआ है। किंतु यह सुधार आंशिक ही है। इसे नारी स्वाधीनता का पूर्णरूपेण प्रतीक नहीं माना जा सकता। इसलिए कि नारी उच्च शिक्षित होने के बावजूद आज भी घर-परिवा र, समाज और यहाँ तक कि स्वयं अपने मामलों में निर्णय लेने में असमर्थ है। उसकी मानसिक क्षमता आज भी संदिग्ध बनी हुई है। निर्णय केवल पुरुष लेता है और नारी उस पर अमल करती ह ै, भले ही वह मानसिक रूप से उसके निर्णय पर सहमत न हो।
देश की आबादी का आधा भाग महिलाओं का है और इसमें मात्र कुछ गिनी-चुनी महिलाएँ ही है ं, जिन्होंने अपनी दृढ़ निर्णय क्षमता का परिचय दिया ह ै, लेकिन आनुपातिक तौर पर तो नारी की निर्णय क्षमता पुरुष से कमतर ही है।
नारी उच्च शिक्षित होने के बावजूद आज भी घर-परिवार, समाज और यहाँ तक कि स्वयं अपने मामलों में निर्णय लेने में असमर्थ है। उसकी मानसिक क्षमता आज भी संदिग्ध बनी हुई है। निर्णय केवल पुरुष लेता है और नारी उस पर अमल करती है, भले ही वह मानसिक रूप से उसके निर्ण