Hindi, asked by rakheepakhee, 10 months ago

आज के समय में खाद्य पदार्थों तथा दवाइयों मे हो रही मिलावट मानव जीवन के लिए एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। इस संदर्भ में अपने विचार विस्तार पूर्वक लिखिए।

Answers

Answered by anikasharma202
5

Answer:

हमारे दैनिक प्रयोग में आने वाली वस्तुओं का आजकल शुद्ध रूप में मिलना दूभर हो गया है। बाजार में कुछ भी वस्तु हम खरीदने जायें, खूब जाँच पड़ताल कर, उसे खरीदें लेकिन फिर भी विश्वास नहीं होता कि खरीदी गई वस्तु शुद्ध ही होगी। मिलावट की समस्या इस कदर व्यापक बन गई है कि वस्तु की शुद्धता के विषय में हम लोगों के मन में अविश्वास और सन्देह की जड़ बहुत अन्दर तक जम गई है। और ठीक भी है शुद्ध रूप में कोई वस्तु प्राप्त कर लेना बहुत कठिन हो गया है। यह ऐसा छूत का रोग है कि शहरी क्षेत्र से बढ़ता हुआ हमारे ग्रामीण क्षेत्रों तक में भी फैल गया है और अपनी जड़ें फैला रहा है। यद्यपि शहरों में मिलावट का रोग अधिक व्यापक और गहराई से व्याप्त है तथापि हमारे ग्रामीण अंचल इससे बचे हुए नहीं हैं। शिक्षित अशिक्षित, शहरी-ग्रामीण सभी अपनी उत्पादित वस्तुओं में अपने ढंग से मिलावट करते हैं।

पिछले दस वर्षों में हमारे यहाँ मिलावट की मात्रा काफी बढ़ी है। कई वस्तुओं में 25-30 प्रतिशत से लेकर 75-80 प्रतिशत से भी अधिक मिलावट होती है। हमारे लिये यह बात कितने दुर्भाग्य की है कि जहाँ एक ओर वस्तुओं की कीमतें तेजी से बढ़ रही हैं, आसमान को चूम रही हैं वहाँ मिलावट की मात्रा भी बहुत बढ़ गई है। जन-जीवन की निर्वाह की सामग्री ही बड़ी कठिनाई से मिल पावे और वह भी अशुद्ध, मिलावटी हो तब उस समाज की शारीरिक मानसिक स्थिति का क्या हाल होगा, इसकी कल्पना सहज ही सामान्य बुद्धि का व्यक्ति कर सकता है। सचमुच ऐसे समाज का शारीरिक, मानसिक, नैतिक स्वास्थ्य दूषित होगा और इनके फलस्वरूप उसकी प्रगति के द्वार ही अवरुद्ध हो जायेंगे। यह ध्रुव सत्य है कि मिलावटी वस्तुओं के उपभोग से मनुष्य का स्वास्थ्य नष्ट होता है। स्वास्थ्य नष्ट होने के साथ-साथ जीवन की सभी सम्भावनाओं के मार्ग बन्द हो जाते हैं। शरीर से रुग्ण, जीर्ण-शीर्ण मनुष्य क्या कर सकता है? क्या सोच सकता है?

क्या मिलावटी वस्तुओं का प्रभाव जन-जीवन के स्वास्थ्य पर कम पड़ता है जब असंख्यों को रोगी बनना पड़ता है। रोग के साथ-साथ ही उसकी चिकित्सा पर होने वाला व्यय भी कुछ कम नहीं होता। कई बहुमूल्य जीवन फिर भी नहीं बच पाते और नष्ट हो जाते हैं मिलावटी वस्तुओं से उपभोग से। सचमुच ही व्यापक स्तर पर फैलने वाली भयंकर बीमारियों का एक मुख्य कारण अशुद्ध खाद्य का प्रयोग करना भी है। क्या मिलावट करने वाले यह नहीं सोचते कि उनके कारण कितनों को ही अकाल मौत का सामना करना पड़ता हैं? क्या वे परोक्ष रूप से जन-जीवन की सामूहिक हत्या के प्रयत्न नहीं करते। वस्तुओं में मिलावट करके? सभा में बोलते हुए भूतपूर्व स्वास्थ्य मंत्री श्री डी. पी. करमकर ने एक बार कहा था- “एक हत्यारा भी खाद्य पदार्थों में मिलावट करने वालों से अधिक ईमानदार है। वह अपने पाप के प्रति सच्चा होता है और उसे सीधे-सीधे इसका परिणाम भी दण्ड के रूप में भुगतना ही पड़ता है। किन्तु खाद्यपदार्थों में मिलावट करने वाला तो वस्तुओं को विषाक्त करके अनेकों व्यक्तियों की हत्या करके भी समाज में सच्चा, धार्मिक, बना बैठा रहता है और दण्ड से साफ बच जाता है। किसी भी रूप में मिलावट करने वालों को माफ नहीं किया जाना चाहिए। हत्यारों की तरह ही उन्हें भी अपराधी मानकर दण्ड देना अनिवार्य है क्योंकि वे अदृश्य रूप से अनेकों की जानें ले लेते हैं।”

क्या मिलावट करने वाले इस बात पर विचार करेंगे कि उनके द्वारा अज्ञात रूप से कितने जीवन नष्ट होते हैं। कितनों को रुग्ण जीवन बिताना पड़ता है। जीवन निर्वाह के लिए बेचारा मनुष्य न जाने कितनी मेहनत मजदूरी नौकरी चाकरी करता है और फिर भी तंग रहता है। तब तंगी की हालत में भी बाजार में से जैसे कैसे निर्वाह की वस्तुयें खरीद कर लाता है उसका उपभोग करके जब स्वास्थ्य, धन, समय, श्रम, नष्ट होते देखता है तो उसकी दीन स्थिति क्या होती है इसका भुक्त भोगी लोग सहज ही अनुमान लगा सकते हैं। इन मिलावटी, विषाक्त वस्तुओं का सेवन करके कोई स्वस्थ सशक्त रह सकता है? कदापि नहीं। फिर कल्पना कीजिए उस समाज की, उस राष्ट्र की जहाँ खाद्य पदार्थों में मिलावट की समस्या व्यापक स्तर पर फैली हो? क्या वह देश वह समाज उन्नति कर सकेगा, शक्तिशाली बन सकेगा समृद्ध हो सकेगा इसका एक ही उत्तर है नहीं।

क्या मिलावट करके हम अपना ही नाश नहीं करते। यह सत्य है कि समाज के साथ ही व्यक्ति के जीवन का उत्कर्ष-अपकर्ष जुड़ा हुआ है। जिस समाज को हम अपने ही हाथों मिलावटी वस्तुओं का विष देकर रुग्ण, क्षीण, कमजोर बनाते हैं उसे नष्ट करते हैं क्या उसके साथ-साथ एक दिन हमारा नाश भी नहीं हो जायेगा? समाज के नष्ट होने के साथ ही हमें भी नष्ट होना पड़ेगा?

एक बार एक भारतीय सज्जन इंग्लैंड गये थे। एक स्थान पर दूध लेते समय वे पूछ बैठे “इसमें पानी तो नहीं मिला हैं” दुकानदार आश्चर्य चकित होकर बोला-”क्या आपके यहाँ दूध में पानी मिलाया जाता है?” उन सज्जन ने कोई उत्तर नहीं दिया। सचमुच बहुत से देशों में पर्याप्त मूल्य ले लिया जाता है लेकिन मिलावट करना एक बहुत ही हेय कर्म समझा जाता है। इसके मानी यह नहीं कि अन्य देशों में ऐसा होता ही नहीं है। फिर भी बहुत सी जातियों में इस अनैतिक कार्य को बहुत घृणित समझा जाता है। हमें भी राष्ट्र के लिये समाज के लिये जन जीवन की समृद्धि के लिये अपने नैतिक उसूलों के लिये खाद्य पदार्थों में मिलावट के पाप से बचना चाहिये देशव्यापी स्तर पर फैले हुए इस पाप प्रवृत्ति को दूर करना चाहिये। यदि इस सम्बन्ध में हम सफल हो सके तो राष्ट्र के विकास समाज के उत्थान, जन जीवन की समृद्धि में एक बहुत बड़ा काम हो सकेगा।

Hope it helpsss thnkuu

Answered by Zonaali99
0

Answer:

above answer is great....

Similar questions