आज की दुनिया विचित्र नवीन प्रकृति पर सर्वत्र विजई पुरुष आसीन है बंधु नर के करों में वारी विद्युत भाप हुकुम पर चढ़ता उतरता है पवन का ताप है नहीं बाकी कहीं व्यवधान इस कविता का शीर्षक और कवि
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