आज का विषय है जागरण गीत
अब ना गहरी नींद में तुम सो सकोगे,
गीत गाकर मैं जगाने आ रहा हूं l
अतल अस्ताचल तुम्हें जाने ना दूंगा l,
अरुण उदयाचल सजाने आ रहा हूं l
कल्पना में आज तक उड़ते रहे तुम,
साधना से मुड़ कर सिहरते रहे तुम,
अब तुम्हें आकाश में उड़ने ना दूंगा,
आज धरती पर बसाने आ रहा हूं l
सुख नहीं यह,नींद में सपने सजोना,
दुख नहीं यह,शीश पर गुरु भार ढोना,
शूल तुम जिस को समझते थे अभी तक,
फूल में बनाने उसको आ रहा हूं l
फूल को जो फूल समझे, भूल है यह,
शूल को शूल समझे, भूल है यह,
मूल में अनुकूल या प्रतिकूल के कण,
जूली भूलो कि हटाने आ रहा हूं l
देखकर मंझधार को घबराना जाना, हाथ ले पतवार को घबराना जाना,
मैं किनारे पर तुम्हें थकने ना दूंगा,
पार मैं तुमको लगाने आ रहा हूं l
—समर्थ
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nice very good ,.............
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अब ना गहरी नींद में तुम सो सकोगे,
गीत गाकर मैं जगाने आ रहा हूं l
अतल अस्ताचल तुम्हें जाने ना दूंगा l,
अरुण उदयाचल सजाने आ रहा हूं l
कल्पना में आज तक उड़ते रहे तुम,
साधना से मुड़ कर सिहरते रहे तुम,
अब तुम्हें आकाश में उड़ने ना दूंगा,
आज धरती पर बसाने आ रहा हूं l
कवि
लोगों को क्यों जगाना चाहता है?
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