Hindi, asked by luciferya2, 1 month ago

आज के युवा पीढ़ी उच्च शिक्षा प्राप्त कर विदेशों में नौकरियां पाने के लिए तत्पर है पक्ष तथा विपक्ष में अपने तर्क संगत विचार प्रस्तुत करें। please give proper answer under 200 words ​

Answers

Answered by rishikasrivastav88
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Explanation:

WDWD

वि‍देश में पढ़ाई करना, वहाँ बेहतर से बेहतर नौकरी पाना और डॉलर में कमाई कर अपने ही देश लौट आराम से जीवन बि‍ताना भला कि‍से अच्‍छा नहीं लगता। सालों से अमेरि‍का, ऑस्‍ट्रेलि‍या, ब्रि‍टेन, इंग्‍लैंड और कनाडा उन युवाओं की आशा को पूरा करते आ रहे हैं जि‍नके मन में कुछ कर दि‍खाने की ख्‍वाहि‍श है फि‍र चाहे बात वि‍देश में पढ़ाई के अलावा वहीं रहकर जॉब करने की हो या वहाँ से शि‍क्षा ग्रहण कर अपने देश में सपनों को साकार करने की।

प्रेक्‍टि‍कल को प्राथमि‍कता

इंजीनि‍यरिंग, मेडि‍कल, मैनेजमेंट, होटल मैनेजमेंट, आईटी, फाइन आर्ट, आर्कि‍टेक्‍ट वकालत आदि‍ का ज्ञान लेने के लि‍ए वि‍देशों का रुख करने वाले वि‍द्यार्थि‍यों की संख्‍या बढ़ती जा रही है। इसका कारण वहाँ की शि‍क्षा प्रणाली में थ्‍यौरी के अलावा प्रेक्‍टि‍कल नॉलेज का प्रमुखता से समावेश होना है।

Answered by Ralph75
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Explanation:

हर व्यक्ति का समाज, परिवार, दोस्तों व अपने काम के प्रति कुछ न कुछ दायित्व होता है। इसे निभाने के लिए हमें गंभीर भी होना चाहिए। हमें अपने दायित्व को निभाने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए। इन सभी दायित्वों में देश के प्रति कुछ करना हमारा प्रमुख दायित्व है। हमें किसी न किसी रूप में इसे पूरा भी करना चाहिए। जरूरतमंदों की मदद, भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने के लिए हमें हमेशा आगे आना चाहिए । युवा पीढ़ी को संस्कारवान बनाना, उसे अच्छे-बुरे की समझ करवाकर भी हम अच्छे समाज का निर्माण कर सकते हैं। आज की युवा आधुनिकता के रंग में अपने संस्कारों, नैतिकता और बड़ो का आदर करना भूल रही है। हमारा दायित्व है कि युवा पीढ़ी को सही मार्ग दिखाएं, ताकि आने वाला कल अच्छा हो । जहां पर बच्चा गलत करता है उसे टोकना चाहिए।

संसार में मानव परमात्मा की प्रमुख व खूबसूरत कलाकृति है तथा मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। मानव होने के नाते हम कुछ ऐसी मानवीय संवेदनाओं, आवश्यकताओं, अपेक्षाओं व धारणाओं के सूत्र में बंधे हुए हैं, जिसका कोई कानूनी, शास्त्रीय, धार्मिक या जातीय प्रतिबंध न होते हुए भी हमारे निजी, सामाजिक, पारिवारिक और राष्ट्रीय जीवन से सीधा सरोकार है। इनका निर्वाह हमारे नैतिक दायित्व के अंर्तगत प्रमुख है। किसी लाभ, स्वार्थ या प्रतिफल की इच्छा के बिना दूसरों की मंगल कामना, लोक कल्याण, सबके हित में योगदान करना भी हमारे दायित्व में आता है।

आज से 30 वर्ष पूर्व 1986 में डीएवी संस्था से जुड़ने का मौका मिला तो जीवन की दिशा ही परिवर्तित हो गई। जीवन को नए अर्थ मिलने लगे। यह एहसास हुआ कि गुरु का कार्य केवल पुस्तकों के ज्ञान की मंजिल तक सीमित नहीं है, अपितु उसका पथ प्रदर्शक बन व्यावहारिकता में उसे मंजिल तक पंहुचाना भी है।

आज की युवा पीढ़ी को भावी व चरित्रवान बनाना तथा पौराणिक ज्ञान से दनुप्रमाणित होकर आधुनिक तकनीक और विज्ञान में भी किसी से पीछे न रहने की पद्धति का अनोखा संगम बच्चों के भविष्य को एक स्वर्णिम राह की ओर ले जाएगा। अगर सभी अच्छे बन जाएंगे तो निश्चित रूप से समस्त समाज भी अच्छा हो जाएगा। शिक्षक के रूप में शिक्षा का मुख्य उद्देश्य शिष्यों को सभ्य एवं शिक्षित बनाना है न केवल साक्षर। शिक्षक होने के नाते हमारा दायित्व हो जाता है कि बच्चों में नैतिक मूल्यों को भी भरें और संस्कारों को लेकर उनके साथ रोजाना बातचीत की जाए । रोजाना अगर संस्कार की बात होगी तो बच्चे स्वयं ही नैतिक मूल्य व संस्कारों के प्रति सजग रहेंगे जिससे हमारा दायित्व भी पूरा हो जाएगा।

वर्तमान युग में प्रश्न प्रबल हो गया है कि समाज का प्रत्येक व्यक्ति क्या अपने दायित्वों की पालना कर रहा है कि नहीं। यदि हां तो समाज में फैली हुई निराशा और असंतोष का वातावरण क्यों बन रहा है । समाज की यह तस्वीर डराने वाली है, जिसमें कहीं शिष्यों द्वारा अध्यापकों का कत्ल किया जा रहा है। तो कोई अपने माता-पिता, जिन्होंने पैदा कर उन्हें सक्षम बनाया, उन्हीं पर अत्याचार कर रहा है। कहीं नारी का अपमान, चोरी, लूटपाट की घटनाएं, शोषण, नशाखोरी, भ्रष्टाचार की घटनाएं आने वाली पीढ़ी को भ्रमित कर रही हैं। इसमें हमारा दायित्व बन जाता है कि हम भटक रही इस पीढ़ी को नैतिकता का पाठ पढ़ाएं, जिससे उन्हें संस्कार मिल सकें। अच्छे संस्कार होंगे तो अच्छे व बुरे में फर्क का भी पता लग सकेगा। स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है कि मन की असीम शक्ति और सामर्थ्य को पहचान कर व्यक्ति न केवल विचारवान हो सकता है, बल्कि अच्छे इंसान में भी परिवर्तित हो सकता है।

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