आज के ज़माने में शादी के नाम पर आडंबर और दुर्व्यय बढ़ते जा रहे है। यह केवल पारिवारीक ही नहीं बल्कि एक सामाजिक समस्या बन गई है।
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शादियों में फिजूलखर्ची, दिखावा और आडंबर एक ऐसा विषय है जो उस समय से ही मेरे अंतर्मन को कचोटता रहा है जब से मैंने सामाजिक जीवन में थोड़ी-बहुत रुचि लेनी शुरू की। उस जमाने में हम मारवाड़ी युवा मंच के बैनर तले सक्रिय हुआ करते थे। उन दिनों खुद इन पंक्तियों के लेखक ने, मुरलीधर तोसनीवाल, प्रमोद जैन आदि साथियों ने अपनी-अपनी शादियों में किसी न किसी हद तक कुछ परंपराओं को तोड़ा। तब ऐसा लगने लगा था कि ये उदाहरण एक आंदोलन की चिनगारी बनेंगे और आगे आने वाला आंदोलन समाज में शादी-ब्याह के मौकों को कर्ज लेकर घी पीने के मौके बनने से रोकेगा।
उन दिनों हमारे संकीर्ण मस्तिष्कों को यह लगता था कि सिर्फ मारवाड़ी समाज में ही शादियों के मौकों पर इतना आडंबर, तामझाम और भदेसपन की सीमाएं छूने वाली फिजूलखर्ची होती है। इसका कारण शायद यह होगा कि असमिया समाज में उन दिनों और आज भी तुलनात्मक रूप से शादियां सादगीपूर्ण होती हैं। हमें पता नहीं था कि असम के बाहर सारा भारत आज इस सामाजिक व्याधि के नीचे दबा हुआ कराह रहा है।
आप अध्ययन करके देखें तो पाएंगे कि भारत के हर समाज में अपनी क्षमता से अधिक पैसे शादी पर खर्च करने की प्रवृत्ति काम करती है। इसके कई कारण होते हैं। अपने दैनंदिन जीवन में सीमित संसाधनों से अपना काम चलाने वाले व्यक्ति के लिए शादी सिर्फ एक सामाजिक समारोह न होकर यह दिखाने का अवसर होता है कि उसने पिछले 25 सालों में क्या किया? आर्थिक सीढ़ियों पर कितनी पायदानें इस बीच वह चढ़ चुका है यह दिखाने के लिए शादी के अलावा यदि उसके पास कोई दूसरा मौका होता है तो वह होता है आलीशान घर बनवाने का।
समाज के क्रियाकलाप पर जब सोचते हैं तो कई अजीब चीजें देखने को मिलती हैं। एक मित्र ने ठीक ही प्रश्न किया कि मोबाइल तो बात करने के लिए होता है। फिर लोग इतने महंगे मोबाइल क्यों खरीदते हैं। इसी तरह प्रश्न किया जा सकता है कि शादी तो दो युवाओं के आपसी बंधन को सामाजिक मान्यता देने के लिए होती है, फिर इसमें बेतहाशा खर्च क्यों? यह प्रश्न किसी भी चीज के बारे में पूछा जा सकता है। साधारण शर्ट पहनने से काम चल सकता है तो इतनी कीमती शर्ट क्यों पहनते हैं। इन सवालों का जवाब यह है कि समाज में कोई चीज वही नहीं रह जाती जिससे उसकी शुरुआत हुई थी। विकसित समाज जटिल भी होता है। एक विकसित समाज में मोबाइल सिर्फ बात करने के लिए नहीं होता, यह आपकी हैसियत प्रदर्शित करने का एक माध्यम भी है। एक शर्ट सिर्फ तन ही नहीं ढकती, यह सामाजिक पायदान पर आपका स्थान भी निर्णय करती है। इसी तरह शादी सिर्फ शादी नहीं है, यह समाज में आपका स्थान निर्णय करती है, उसका पुनर्निर्धारण करती है।