Hindi, asked by sejaltembhare3004, 5 days ago

आज्ञेय ki hmara desh kvita ka saar

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Answered by rameshrajput16h
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Explanation:

इन्हीं तृण-फूस-छप्पर से

ढंके ढुलमुल गँवारू

झोंपड़ों में ही हमारा देश बसता है

इन्हीं के ढोल-मादल-बाँसुरी के

उमगते सुर में

हमारी साधना का रस बरसता है

इन्हीं के मर्म को अनजान

शहरों की ढँकी लोलुप

विषैली वासना का साँप डँसता है

इन्हीं में लहरती अल्हड़

अयानी संस्कृति की दुर्दशा पर

सभ्यता का भूत हँसता है। – सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’

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