आज समाज में महंत जी जैसे साधू संत भरे पड़े है। ऐसे ढोंगी और पाखंडी साधू संतो से हम किस प्रकार बच सकते है? अपने सुझाव लिखिए। please answer fast
I will Mark you brainlist and follow and like your 10 answers
am also keeping 20 points for this answer
Answers
गुरुमीत राम रहीम को अपने कुकृत्य पर कोर्ट ने अपराधी ठहराते हुए 10-10 साल की जेल की सजा सुनाये जाने से हमारे तथाकथित बाबाओं, संतों,साधुओं, में घबराहट फैल गई है. आजकल बाबाओं, साधु-संतों में पिताजी, बापू,बापजी, पापा जी, ईश्वर कहलाने की प्रवृत्ति बहुत बढ रही है. कोई भी सेवक या दास बनना नहीं चाहता है, जबकि साधु-संतों, बाबाओं, आदि का मूल धर्म ही सेवक या दास बने रहने का ही होता है.
एक बात तो सही है कि इन सभी में आजकल घबराहट देखी जा रही है.ये सभी अपने गुरू से डरते हों या नहीं लेकिन संविधानाधीश डॉ अंबेडकर के नाम से पसीने छूटते हैं. सारी तपस्या, सिद्धियाँ संविधानाधीश डॉ अंबेडकर के सामने फेल हो जाती है.
आज कुछ साधु-संत, बाबा लोग अपने आप को पीठाधीश्वर कहलाना पसंद करते हैं. किसी धार्मिक स्थान पीठ के प्रमुख के रूप में पीठाधीश तो हो सकते हैं लेकिन पीठाधीश्वर कौन बनाता है ? यानि ये इस पीठ के प्रमुख नहीं हैं बल्कि ईश्वर हैं. यदि ईश्वर ही हैं तो फिर संविधानाधीश डॉ अंबेडकर से तो डरने की जरूरत ही नहीं होनी चाहिए.
मेरा निवेदन है कि जो स्वयं अपनी वैतरणी पार नहीं कर सकता हो तो ऐसे तथाकथित बाबाओं साधू-संतों से दूरी बनाकर ही रहना चाहिए. आप देखें अधिकतर बाबा, साधु, संत, महंतों का जीवनयापन गृहस्थ बंधुओं की दया मेहरबानी से ही होता है. यदि गृहस्थ दान दक्षिणा, भेंट देना बंद कर दें तो अधिकतर बाबा लोग रोड़ पर भीख मांगते दिखाई देंगे. गृहस्थ इन लोगों का अन्नदाता होता है। नियम यह होता है कि अन्नदाता के चरणों में नमन किया जाना चाहिए जबकि ऐसा होता नहीं है.
आपको कहीं भी कोई बाबा, साधु-संत, महंत भौतिक विलासिता का उपभोग करता दिखाई दे, शानदार गाड़ी घोड़े, वातानुकूलित आश्रम, चेला चेली रूपी नौकर चाकरों से घिरा दिखे, आडंबर का अखाड़ा नज़र आये तो समझ लें आपको ऐसे लोगों से बच कर रहने की जरूरत है. कई बाबा,साधु, संत जगह जगह चेला चेली की मांग करते देखे गए हैं. उनके स्वयं के बेटे-बेटी को चेला-चेली नहीं बना पाते हैं. आज तपस्वी, त्यागी, समर्पण भाव के साधु-संत बाबा लोग केवल अँगुलियों पर गिने जा सकते हैं. वे कभी किसी को यह नहीं कहते कि “मुझे चेला-चेली दो” . जो साधु संत बाबा राजनेता के घर जाकर उनकी चरण वंदना ( दिखती नहीं है) करता हो तो तत्काल समझ जायें यह कैसा है .
हमारे ऐसे बहुत से संत महात्मा हैं जिनके त्याग और कार्यों को देख कर सिर सम्मान से झुक जाता है और कई ऐसे होते हैं जिनके कार्यों से सिर शर्म से झुक जाता है। *निष्कर्ष तो यही निकलता है कि आज के समय में बाबाओं, साधु-संतों, पीठाधीश्वरों से दूरी बनाकर रखी जाये। इन सब के गुरूओं के महागुरू संविधानाधीश डॉ अंबेडकर साहब के बताये रास्ते पर चलकर ही जीवन सुधार सकते हैं* बंधुओं सामाजिक विकास,और अपने मन की शांति चाहिए तो ऐसे कथित बाबा लोगों, साधु-संतों,महात्माओं,पीठाधीश्वरों से बच कर रहें. जिससे सारे संत महंत बाबा, डरते हों उसी की शरण में हमें जाना चाहिए.
Answer:
हिंदी साहित्य का भक्ति काल 1375 वि0 से 1700 वि0 तक माना जाता है। यह युग भक्तिकाल के नाम से प्रख्यात है। यह हिंदी साहित्य का श्रेष्ठ युग है। समस्त हिंदी साहित्य के श्रेष्ठ कवि और उत्तम रचनाएं इस युग में प्राप्त होती हैं।
दक्षिण में आलवार बंधु नाम से प्रख्यात भक्त हो गए। इनमें से कई तथाकथित नीची जातियों से आए थे। वे बहुत पढे-लिखे नहीं थे परंतु अनुभवी थे। आलवारों के पश्चात दक्षिण में आचार्यों की एक परंपरा चली जिसमें रामानुजाचार्य प्रमुख थे।
रामानुजाचार्य की परंपरा में रामानंद हुए। आपका व्यक्तित्व असाधारण था। वे उस समय के सबसे बड़े आचार्य थे। उन्होंने भक्ति के क्षेत्र में ऊंच-नीच का भेद तोड़ दिया। सभी जातियों के अधिकारी व्यक्तियों को आपने शिष्य बनाया। उस समय का सूत्र हो गयाः जाति–पांति पूछे नहिं कोई। हरि को भजै सो हरि का होई।।
रामानंद ने विष्णु के अवतार राम की उपासना पर बल दिया। रामानंद ने और उनकी शिष्य-मंडली ने दक्षिण की भक्तिगंगा का उत्तर में प्रवाह किया। समस्त उत्तर-भारत इस पुण्य-प्रवाह में बहने लगा। भारत भर में उस समय पहुंचे हुए संत और महात्मा भक्तों का आविर्भाव हुआ।