आज सवेरे, जब बसंत आया उपवन में चुपके-चुपके ।
कानों ही कानों मैंने उससे पूछा-'"मित्र! पा गए तुम तो अपने योवन का उल्लास दुबारा
गमक उठे फिर प्राण तुम्हारे, फलों-सा मन फिर मुस्काया, पर साथी
क्या दोगे मुझको?
मेरा यौवन मुझे दुबारा मिल न सकेगा?''
सरसों की उँगलियाँ हिलाकर संकेतों में वह यों बोला
मेरे भाई!
व्यर्थ प्रकृति के नियमों को यों दो न दुहाई,
होड़ न बॉधो तुम यों मुझसे।।
जब मेरे जीवन का पहला पहर झुलसता था आग की लपटों में,
तुम बैठे थे बंद उशीर पटों से घिरकर ।
मैं जब वर्षा की बाढ़ों में डूब--डूबकर उतराया था
तुम हँसते थे वाटर-पूफ कवच को ओढे ।।
और शीत के पाले में जब गलकर मेरी देह जम गई
तब बिजली के हीटर से, तुम सेक रहे थे अपना तन-मन ।।
Explain it
meaning.
Answers
आज सवेरे, जब वसंत आया उपवन में चुपके-चुपके ।
प्रश्न में दी गई पंक्तियों में कवि ने वसंत ऋतु की शुरुआत में जो होता है उस के बारे में वर्णन किया है , जब वसंत ऋतु आती है तब सब कुछ नया होता | हर चीज़ सुन्दर लगती है , वसंत साल का सबसे सुन्दर मौसम होता है| वसंत तो एक शुरुआत होती है , वसंत में आगे चल फूल, फल बनते है|
हे मित्र तुम्हें मैं वसंत फिर से आ गया तुम्हें यौवन की खुशियाँ फिर से मिल गई है| तुम्हारा मन फिर से ख़ुशी से महक उठेगा | पहले तुम अपने घरों में छुपकर बैठ जाते थे मेरे डर से पहने लेते थे वाटर-पूफ| तुम हसंते थे मुझ पर जब सहित के पाले में जम जाता था और तुम अपने घरों में हीटर से गर्मी लेते थे| लो मैं फिर से आ गया वसंत तुम्हारे लिए तुम्हें चेहरे में मुस्कान देने के लिए | तुम्हें सर्दी से बचाने के लिए|
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Answer:
आज के मनुष्य का प्रकृति से संबंध टूट गया है। उसने प्रगति और विकास के नाम पर प्रकृति को इतना नुकसान पहुँचाया है कि अब प्रकृति का सानिध्य सपनों की बात लगती है। महानगरों में तो प्रकृति के दर्शन ही नहीं होते हैं। चारों ओर इमारतों का साम्राज्य है। ऋतुओं का सौंदर्य तथा उसमें हो रहे बदलावों से मनुष्य परिचित ही नहीं है। कवि के लिए यही चिंता का विषय है। प्रकृति जो कभी उसकी सहचरी थी, आज वह उससे कोसों दूर चला गया है। मनुष्य के पास अत्यानुधिक सुख-सुविधाओं युक्त साधन हैं परन्तु प्रकृति के सौंदर्य को देखने और उसे महसूस करने की संवेदना ही शेष नहीं बची है। उसे कार्यालय में मिले अवकाश से पता चलता है कि आमुक त्योहार किस ऋतु के कारण है। अपने आसपास हो रहे परिवर्तन उसे अवगत तो कराते हैं परन्तु वह मनुष्य के हृदय को आनंदित नहीं कर पाते हैं। मनुष्य और प्रकृति का प्रेमिल संबंध आधुनिकता की भेंट चढ़ चुका है। आने वाला भविष्य इससे भी भयानक हो सकता है।