Hindi, asked by rajeshkrrai50, 10 months ago

आजाद भारत में रहते हुए हमने बंदी जैसा जीवन बिताया इस अनुभव पर 10 पंक्तियां लिखें​

Answers

Answered by ganeshsahni57209
2

Answer:

Featuredसमाज

‘हमें आज़ादी तो मिल गई है पर पता नहीं कि उसका करना क्या है’07:03 AM Aug 15, 2019 | बलराज साहनी

आज़ादी के 72 साल: हमारी हालत अब भी उस पक्षी जैसी है, जो लंबी कैद के बाद पिंजरे में से आज़ाद तो हो गया हो, पर उसे नहीं पता कि इस आज़ादी का करना क्या है. उसके पास पंख हैं पर ये सिर्फ उस सीमा में ही रहना चाहता है जो उसके लिए निर्धारित की गई है.

(अभिनेता बलराज साहनी ने यह कालजयी भाषण 1972 में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के दीक्षांत समारोह में दिया था.)

लगभग बीस साल पहले की बात है. कलकत्ता के ‘फिल्म जर्नलिस्ट एसोसिएशन’ की ओर से ‘दो बीघा जमीन’ फिल्म के निर्देशक बिमल रॉय और हमें यानी उनके साथियों को सम्मान दिया जा रहा था. ये एक साधारण पर रुचिकर समारोह था. बहुत अच्छे भाषण हुए, पर श्रोता बड़ी उत्सुकता के साथ बिमल रॉय को सुनने की प्रतीक्षा कर रहे थे. हम सब वहां फर्श पर बैठे थे, मैं बिमल दा के पास ही बैठा था और देख रहा था कि जैसे-जैसे उनके बोलने का समय आ रहा था कि उनकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी. फिर जब उनकी बारी आई, वे उठे और हाथ जोड़कर सिर्फ इतना कहा, ‘जो कुछ कहना होता है मैं अपनी फिल्मों के माध्यम से कह देता हूं, मेरे पास कहने के लिए और कुछ नहीं है.’

इस समय मैं भी सिर्फ इतना ही कहना चाहता हूं. अगर मैं इससे ज्यादा कहने का साहस कर पा रहा हूं, तो सिर्फ इसलिए कि जिस व्यक्ति के नाम पर आपकी यूनिवर्सिटी बनी है, उसके व्यक्तित्व से मुझे प्यार है. उतना ही प्यार और आदर, बल्कि उससे भी ज्यादा, आपकी यूनिवर्सिटी से जुड़े मेरे मन में पीसी जोशी के लिए है. मेरे जीवन के कुछ बेहद कीमती पल इनकी ही बदौलत हैं, कुछ ऐसे कर्ज़ भी हैं जिन्हें मैं कभी चुका नहीं सकता.

इसलिए आपकी संस्था की ओर से मिले किसी भी निमंत्रण को अस्वीकार नहीं कर सकता. अगर आप मुझे फर्श साफ करने के लिए भी बुलाते तब भी मैं उतना ही खुश और सम्मानित महसूस करता, जितना इस समय यहां खड़े होकर आपको संबोधित करने में महसूस कर रहा हूं. पर उस सेवा के लिए मैं शायद अधिक योग्य साबित होता.

कृपया मुझे गलत न समझें. मैं शिष्टता का दिखावा नहीं कर रहा हूं. जो बात मैंने कही है, वह दिल से कही है और अब आगे भी जो कहूंगा, दिल से ही कहूंगा, फिर चाहे वह आपको अच्छा लगे या न लगे, वह ऐसे मौकों के अनुकूल हो चाहे प्रतिकूल. शायद आप सब जानते होंगे कि शैक्षणिक वातावरण से मेरा संबंध लगभग 25 बरसों से टूटा हुआ है. मैंने कभी किसी विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह को भी संबोधित नहीं किया है.

वैसे यहां मैं ये भी जोड़ना चाहूंगा कि आपकी दुनिया से मेरा नाता टूटना ऐच्छिक नहीं था. इस दूरी के लिए कहीं न कहीं हमारे देश की फिल्म बनाने की दशा जिम्मेदार है. हमारी फिल्मी दुनिया में या तो अभिनेता को इतना कम काम मिलता है कि वह भूखों मरता है या फिर चाहे धन-दौलत की भूख हो या न हो, उसे इतना ज्यादा काम करना पड़ता है कि वह हर तरफ से कट जाता है. उसे न अपने पारिवारिक जीवन की सुध-बुध रहती है, न ही अपनी मानसिक और आत्मिक आवश्यकताओं की.

पिछले 25 वर्षों में मैंने लगभग सवा-सौ फिल्मों में काम किया है. इतने समय में अमेरिका या यूरोप में एक अभिनेता 30-35 फिल्मों में काम करता है. इससे आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं मेरी ज़िंदगी का कितना बड़ा हिस्सा सेल्यूलॉयड की रीलों में दफन हुआ पड़ा है. इस अरसे में कितनी किताबें थीं, जो मैं नहीं पढ़ सका, कितने आयोजन थे जहां मैं जाना चाहता था पर जा नहीं सका.

कभी-कभी मैं खुद को बहुत पिछड़ा हुआ महसूस करता हूं और मेरी कुंठा तब और बढ़ जाती है जब मैं सोचता हूं कि इन सवा सौ फिल्मों में कितनी फिल्में महत्वपूर्ण होंगी? कितनी ऐसी फिल्में होंगी, जिन्हें याद रखा जाएगा? शायद बहुत कम, मुश्किल से एक ही हाथ की उंगलियों पर गिनने लायक. और उन्हें भी लोग या तो भूल गए हैं या जल्दी ही भूल जाएंगे.

फिल्म दो बीघा ज़मीन में बलराज साहनी (01 मई 1913 – 13 अप्रैल 1973). (फोटो साभार: सिनेस्तान)

इसीलिए मैंने कहा था कि मैं शिष्टता नहीं दिखा रहा हूं. मैं आपको सचेत करना चाहता हूं कि अगर मेरा भाषण खास विद्वता का सबूत न दे, तो आपको निराश न होकर मुझे माफ कर देना चाहिए. बिमल दा बिलकुल सही थे. एक कलाकार का क्षेत्र उसका काम ही होता है. इसीलिए मैं यहां जो कुछ कह रहा हूं, अपने जीवन के अपने अनुभव से ही कह रहा हूं, जो मैंने देखा-परखा-महसूस किया. उससे बाहर की बात करना बेवकूफी होगी, किसी दिखावे सरीखा होगा.

इस समय मुझे अपने विद्यार्थी जीवन की एक घटना याद आ रही है, जिसे मैं कभी भुला नहीं सका, जिसने मेरे मन पर बहुत गहरा असर डाला. मैं अपने परिवार के साथ गर्मियों की छुट्टियां मनाने रावलपिंडी से कश्मीर जा रहा था. पिछली रात भारी बारिश होने के कारण से रास्ते में पहाड़ का एक हिस्सा टूटकर गिर गया था जिसके कारण सड़क बंद हो गई थी.

Answered by bhattacharyataniya74
6

Answer:

Explanation:

  1. मारी हालत अब भी उस पक्षी जैसी है, जो लंबी कैद के बाद पिंजरे में से आज़ाद तो हो गया हो, पर उसे नहीं पता कि इस आज़ादी का करना क्या है. उसके पास पंख हैं पर ये सिर्फ उस सीमा में ही रहना चाहता है जो उसके लिए निर्धारित की गई है.
  2. मारी हालत अब भी उस पक्षी जैसी है, जो लंबी कैद के बाद पिंजरे में से आज़ाद तो हो गया हो, पर उसे नहीं पता कि इस आज़ादी का करना क्या है. उसके पास पंख हैं पर ये सिर्फ उस सीमा में ही रहना चाहता है जो उसके लिए निर्धारित की गई है.
  3. वायरस की प्रभावी प्रजनन संख्या गिर गई है. यह एक बीमारी के फैलने की क्षमता को मापने का एक तरीक़ा है. साथ ही रिपोर्ट किए गए संक्रमण के मामलों के दोगुना होने का समय भी बढ़ गया है. साथ ही, देश में कोरोना वायरस के मामलों में अब भी तेज़ी बन हुई है. मुंबई, दिल्ली और अहमदाबाद जैसे हॉटस्पॉट शहरों में लोगों को अस्पताल नहीं मिल रहे हैं और मौते हो रही हैं.
  4. वायरस की प्रभावी प्रजनन संख्या गिर गई है. यह एक बीमारी के फैलने की क्षमता को मापने का एक तरीक़ा है. साथ ही रिपोर्ट किए गए संक्रमण के मामलों के दोगुना होने का समय भी बढ़ गया है. साथ ही, देश में कोरोना वायरस के मामलों में अब भी तेज़ी बन हुई है. मुंबई, दिल्ली और अहमदाबाद जैसे हॉटस्पॉट शहरों में लोगों को अस्पताल नहीं मिल रहे हैं और मौते हो रही हैं.
  5. भारत में मामला मृत्यु दर (सीएफआर) या कोविड-19 के कारण मरने वाले लोगों का अनुपात लगभग 2.8% है. लेकिन ये मामले विवादस्पद हैं क्योंकि इन्हें लेकर कई बातें सामने आ रही हैं.
  6. साथ ही दुनिया के कई देशों की तरह यहां भी एक उलझन बनी हुई है कि कोविड-19 से हुई मौत को कैसे परिभाषित करें.
  7. विशेषज्ञों का कहना है कि महामारी के इस चरण में कुल मिलाकर सीएफआर को देखने से सरकार को आत्मसंतुष्टि ही मिल सकती हैं.
  8. प्रोफेसर मुखोपाध्याय कहते हैं, “हमारे यहां संक्रमण बड़ी संख्या में हैं लेकिन बहुत कम लोग बीमार हैं. ऐसे में हमने खुद को बेहद ख़राब स्थिति से बचा लिया है.”
  9. योंग ने देखा कि महामारी सोशल डिस्टेंसिग, टेस्टिंग की क्षमता, जनसंख्या घनत्व, आयु संरचना, सामाजिक सामूहिकता और किस्मत जैसे कारकों से प्रभावित होती है.
  10. भारत में लाखों मजदूरों के शहर छोड़कर अपने घर लौटने के चलते संक्रमण का फैलाव हुआ. ये मजदूर अचानक हुए लॉकडाउन के कारण नौकरी खो चुके थे और उनके पैसे भी नहीं थे. वो पैदल चलकर, भीड़भाड़ वाली ट्रेनों और बसों से अपने गावों में पहुंचें. उदाहरण के लिए, ओडिशा में 80 प्रतिशत मामले इन मजदूरों के ही हैं.
Similar questions