आजादी के बाद भी हमारे देश में किस तरह की समस्याएं व्याप्त हैं स्पष्ट करें
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Answer:हम कैसी आजादी और किस आजादी की बात करते हैं। आम आदमी को तो आजादी का मतलब भी नहीं पता। तथाकथित खास आदमी (रोटी के लिए मजबूर) को इसकी कीमत नहीं पता। एक तरफ विकास की चकाचौंध, इंडिया शाइनिंग, विकास के आंकड़े, विकास का दर आदि वातानुकूलित कमरे में नीति बनाते बिगाड़ते देश के कर्णधार, नीतिकार हैं, वहीं दूसरी ओर अपने पेट पालने के लिए और दाल-रोटी के जुगाड़ में सुबह होते ही मजदूर किसी भिखारी की तरह काम तलाश करते नजर आते हैं।
आज जहां हमारे देश में भुखमरी और गरीबी के कारण लोग अपने जिगर के टुकड़े बच्चे को बेच देते हैं, क्योंकि वे उस बच्चे की क्षुधा को शांत करने में सक्षम नहीं हैं। एक तो सूखे के कारण किसान आत्महत्या करने को विवश हैं क्योंकि समय पर उन्हें सरकार से अनुदान या अपेक्षित मदद नहीं मिल पा रही है जबकि केन्द्र और तमाम राज्य सरकारें दोनों कह रही हैं कि हम किसान के शुभचिंतक हैं।
अगर केंद्र और राज्य सरकारें दोनों मिलकर किसानों की मदद कर रही हैं तो आखिर में किसान क्यों आत्महत्या को विवश हैं? इसका जवाब न केन्द्र सरकार के पास है और न राज्य सरकार के पास। कहां गई हमारी मानवता, हृदय की व्यथा और राज्य सरकार/ केंद्र सरकार, गैर सरकारी संगठन, धन्ना सेठ, समाज के पुरोधा और सामाजिक उत्थान करने वाले, दम्भ भरने वाले शुभचिंतक?
हमारी भारत की यह छवि उजली और धुंधली दोनों तस्वीर पेश कर रही हैं। एक तरफ उजाला ही उजाला और एक तरफ अंधेरा ही अंधेरा। हरे भारत और इंडिया दोनों की तस्वीर? यह तस्वीर बहुत कुछ बोलती है। अगर हम सरकारी आंकड़ों पर ही जाएं तो हम पाते हैं आजादी के 69 सालों के बाद भी, अभी तक गरीबों को कुछ खास नहीं मिला है। हमारे सामने अर्जुन सेन गुप्ता कमेटी की रिपोर्ट है जिसमें कहा गया है कि देश की आबादी का 74 फीसदी हिस्सा जनता 20 रुपए रोजाना आमदनी पर जी रही है। हमारे यहां असंगठित क्षेत्रों में लगभग 80-85 प्रतिशत लोग जुड़े हुए हैं उन्हें अपेक्षित सुविधाएं भी नहीं मिल पा रही हैं जबकि 10-15 संगठित क्षेत्र के लोगों के लिए सरकार और निजी कंपनियां भी अनदेखी करने का साहस नहीं जुटा पाती, क्योंकि वे संगठित क्षेत्र के हैं।
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