Hindi, asked by naveenmahto0, 7 months ago

आज दुनिया कैसी हो गई है?​

Answers

Answered by VanditaNegi
3

Answer:

HÉRÉ IS YØUR ANSWÉR MÀTË!!

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HØPE THÍS HÊLPS YØÛ!!

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Explanation:

मतलबी।

Answered by Darkgirl52
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दुनिया की आबादी लगातार बढ़ती जा रही है.

दिल्ली के किसी व्यस्त बाज़ार में हों, टोक्यो में चौराहा पार कर रहे हों या लंदन की भूमिगत रेल में खचाखच भरी जगहों को देखकर दिमाग में सवाल उठता है कि आने वाले दशकों में क्या होगा?

आने वाले दशकों में आबादी कितनी बढ़ेगी, इसका आकलन नामुमकिन सा लगता जा रहा है. अनुसंधान में जुटे वैज्ञानिक एक मुद्दे पर एकमत हैं - दुनिया भर में लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है.

संयुक्त राष्ट्र के जुलाई में नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक़, साल 2030 में दुनिया की आबादी आज के 7.3 अरब से बढ़कर 8.4 अरब हो जाएगी.

कहां बढ़ेगी जनसंख्या?

भविष्य में लोगों की जीवनशैली कैसी होगी, इसको लेकर विशेषज्ञों ने आकलन शुरू कर दिया है. ज्यादातर एक्सपर्ट्स का मानना है कि मौजूदा ट्रेंड के मुताबिक़ आने वाले दिनों में आबादी का बड़ा हिस्सा शहरों में आ जाएगा.

खेती के तौर तरीके आधुनिक होंगे, लेकिन इसमें शामिल लोगों की संख्या कम होती जाएगी.

यह पहले से होता चला आया है. साल 1930 में दुनिया की महज 30 फ़ीसदी आबादी शहरों में रह रही थी, जो अब 55 फीसदी तक पहुंच गई है.

साल 2050 तक करीब दो-तिहाई लोग शहरी क्षेत्रों में रहने आ जाएंगे.

रॉकफेलर यूनिवर्सिटी और कोलंबिया यूनिवर्सिटी के लेबोरेटरी ऑफ पापुलेशन के प्रमुख जोएल कोहेन कहते हैं, "अब से लेकर शताब्दी के अंत तक शहरों की आबादी बढ़ेगी."

कोहन ने 'हाउ मेनी पीपल कैन द अर्थ सपोर्ट' किताब लिखी है. वे कहते हैं, "अब से लेकर 2100 तक प्रत्येक पांच-छह दिनों में दुनिया भर के शहरों की आबादी में दस लाख का इज़ाफ़ा होगा."

उनके अलावा दुनिया की करीब आधी आबादी छोटे शहरों में रहेगी, और हर छोटे शहर की आबादी पांच लाख से लेकर 30 लाख के बीच होगी.

बाकी लोग महानगरों में रहेंगे, जिनकी आबादी एक करोड़ या उससे अधिक होगी. ये महानगर दुनिया के विकासशील और तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं - चीन, भारत और नाइजीरिया में होंगे.

महानगरों पर दबाव बढ़ेगा

इन देशों में शासन की अपनी चुनौतियां हैं, जिसके चलते शहरों की आबादी एक करोड़ या उससे ज्यादा नहीं होगी.

ऐसे में महानगरों का दायरा बढ़ेगा जैसा कि हम ग्रेटर न्यूयार्क सिटी एरिया या फिर चीन के पर्ल रिवर डेल्टा जैसा इलाकों में देख रहे हैं.

महानगर का भौगोलिक दायरा भी बढ़ेगा और आबादी का घनत्व भी.

संयुक्त राष्ट्र के पॉपुलेशन डिवीजन के निदेशक जॉन विलमोथ कहते हैं, "लोगों को कहीं ज्यादा घनत्व (प्रति वर्ग किलोमीटर में ज़्यादा लोग) वाले इलाकों में रहना होगा, जैसा कि मैनहैटन में अभी दिख रहा है."

हालांकि दूसरी जगहों पर मैनहैटन जैसी सुविधा नहीं होगी. मैनहैटन में स्वास्थ्य सुविधा, शिक्षा के विकल्प, सांस्कृतिक अवसर, रोजगार के अवसर, आधारभूत ढांचे बेहतर स्थिति में हैं.

लेकिन यह दुनिया के दूसरे शहरी हिस्सों का सच नहीं होगा, क्योंकि उन्हें शहर के तौर पर विकसित होने का मौका ही नहीं मिलेगा.

वाशिंगटन यूनिवर्सिटी में सांख्यिकी और समाजविज्ञान के प्रोफेसर एड्रियान रेफटेरी के मुताबिक बढ़ती आबादी को देखते हुए योजना बनाने की जरूरत है.

नहीं संभलेगी बढ़ती आबादी?

नहीं संभलेगी बढ़ती आबादी?सरकारों और संस्थाओं को साफ़ पानी, शौचालय और कूड़े के प्रबंधन की सुविधाएं विकसित करनी होंगी.

कोहेन कहते हैं, "लेकिन एक मुश्किल ये है कि, मानव संसाधन की कमी महसूस होगी."

आने वाले दिनों में सबसे ज़्यादा आबादी अफ्रीकी देशों में बढ़ने वाली है. माना जा रहा है कि अफ्रीका की मौजूदा आबादी एक अरब से बढ़कर 2100 में चार अरब हो जाएगी.

न्यूयार्क सिटी स्थित गैर सरकारी संस्था पापुलेशन काउंसिल के वाइस प्रेसीडेंट जॉन बोंगार्ट कहते हैं, "अफ्रीकी लोगों की आबादी बढ़ने का अनुमान डराने वाला है.

इसमें ज्यादातर हिस्सा शहरी झुग्गी झोपड़ियों में बदलने वाला है."

बोंगार्ट के मुताबिक अफ्रीका के बड़े शहरों के साथ साथ एशियाई महानगर भी बढ़ती हुई आबादी को संभाल नहीं पाएंगे.

लागोस, ढाका और मुंबई जैसे महानगरों में ये चुनौतियां दिखने लगी हैं. कोहेन कहते हैं, "लोगों को पीने का महंगा पानी ख़रीदना होता है, हर तरफ कूड़े कचरे का अंबार दिखता है और कहीं हरियाली देखन को आंखे तरस जाती है."

विकसित देशों में भी रहन सहन का स्तर नहीं सुधरेगा. बोंगार्ट कहते हैं, "कुछ दशक तक तो तेजी से आर्थिक विकास हुआ, गरीबी कम हुई. लेकिन यह निकट भविष्य में नहीं होगा."

क्या होगी वजहें?

इसकी तीन अहम वजहें हैं- पहली बात तो ये होगी कि विकसित और धनी देशों की विकास की रफ़्तार कम हो जाएगी.

दूसरी अहम बात यह है कि आबादी बढ़ने का असर पर्यावरण पर पड़ेगा और उसके बुरे नतीजे लोगों को झेलने होंगे. हम खेती योग्य ज़मीन का इस्तेमाल कर चुके होंगे.

नदी और भूजल का ज़्यादा से ज़्यादा इस्तेमाल भी कर चुके होंगे.

तीसरी अहम बात यह होगी कि असमानता हमारी सबसे बड़ी मुश्किल होगी.

पिछले कुछ समय से अमरीका के मध्य वर्ग की आमदनी में बढ़ोत्तरी नहीं हुई है, लेकिन एक फ़ीसदी अमीर लोग की स्थिति पहले से बेहतर हो गई है. बोंगार्ट कहते हैं, "यह सिलसिला जारी रहेगा और इससे पर्यावरण संबंधी मुश्किलें भी पैदा होंगी."

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