आज दुनिया में जो महामारी फैल रही है इसके बारे में अपने विचारों को डायरी के रूप में लिखिए
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कोविड – 19 ने हमारी ज़िन्दगी में उथल-पुथल मचा दी है | लॉकडाउन, स्कूलों का बंद होना और भौतिक दूरी, इन सबका बच्चों पर गहरा असर पड़ रहा है |
यूनिसेफ ने पूरे देश के बच्चों से इस दौरान घर पर की अपनी दिनचर्या का दस्तावेज़ बनाने को कहा |
स्टे होम डायरी बच्चों के ब्लॉग की एक श्रृंखला है जिसमें उनके द्वारा इस दौरान की परिस्थितियों का किस प्रकार सामना किया जा रहा है और उनकी प्रतिदिन की मनोरंजक गतिविधियों का वर्णन होता है जिससे और बच्चों को भी प्रेरणा मिले |
असम के चाय बागानों से लेकर चेन्नई की झुग्गियों तक, इन वीडियो डायरी में बच्चों द्वारा कोविड – 19 अपने तरीके से सामना किये जाने को दिखाया गया है |
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लॉकडाउन डायरी: बाहर नाचती मौत और कमरे में बंद घुटन
चिंकी सिन्हा
बीबीसी संवाददाता
13 अप्रैल 2020
सांकेतिक तस्वीरइमेज स्रोत,GETTY IMAGES
ये बहुत पहले की बात है. मेरे पिता जी को इस बात की बड़ी फ़िक्र रहती थी कि मैं बातें नहीं करती. ये उन दिनों की बात है, जब मैं छोटी बच्ची थी. मैंने फिर से ख़ामोशी की चादर ओढ़ ली है.
अब मैं किसी हड़बड़ी में नहीं हूं. मैं आराम से बातें करती हूं. धीरे-धीरे बोलती हूं. एक बार में एक सच बयां करती हूं और बड़ी मोहब्बत से बातें करती हूं. मेरी आंखों से आंसू बहते रहते हैं और इन आंसुओं के ज़रिए शायद मैं अपनी ग़लतियों पर अफ़सोस ज़ाहिर करती हूं.
अप्रैल के महीने ने यूं भेष बदला है मानो इंतज़ार का दूसरा रूप है. मैं हर बात और हर इंसान की अनदेखी कर देती हूं. मैं फ़ोन को साइलेंट मोड पर रख देती हूं. वक़्त कितना ख़ूबसूरत लगता है न, जब वो ठहरा हुआ होता है. और, जैसा कि एक कवि ने कहा है, अप्रैल का महीना तो देखो, कितना निर्दयी है.
मेरे शहर में एक क़ब्रिस्तान उन लोगों के नाम कर दिया गया है, जिनकी मौत कोरोना वायरस की वजह से हुई. इस शहर की तनहाई में वो लाखों लोग शामिल हैं, जो अपने घरों की खिड़कियों से झांकते हुए इस दौर के ख़त्म हो जाने का इंतज़ार कर रहे हैं.