आज देश हिन्दी को जो स्थान प्राप्त है उसकी समीक्षा करे
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राजभाषा हिंदी की संवैधानिक स्थिति
हमारे देश का संविधान 2 वर्ष, 11 माह तथा 18 दिन की अवधि में निर्मित हुआ तथा 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ था। स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व देश में स्वतंत्रता आंदोलन के साथ-साथ हिंदी को देश की राष्ट्रभाषा बनाये जाने की सर्वाधिक मांग की जाती रही थी।
संविधान निर्माताओं ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने की मांग को दृष्टिगत रखते हुए संविधान सभा ने 14/9/1949 को हिंदी को संघ की राजभाषा स्वीकार करते हुए राजभाषा हिंदी के संबंध में प्रावधान किए।
संविधान के भाग 5 एवं 6 के क्रमश: अनुच्छेद 120 तथा 210 में तथा भाग 17 के अनुचछेद 343, 344, 345, 346, 347, 348, 349, 350 तथा 351 में राजभाषा हिंदी के संबंध में निम्न प्रावधान किये गए हैं। इन प्रावधानों के साथ ही संप्रति भारत की 22 भाषाओं को संविधान की अनुसूची-8 में मान्यता दी गई है। ये भाषाएँ इस प्रकार हैं-
हिंदी, पंजाबी, उर्दू, कश्मीरी, संस्कृत, असमिया, ओड़िया, बांगला, गुजराती, मराठी, सिंधी, तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, मणिपुरी, कोंकणी, नेपाली, संथाली, मैथिली, बोड़ो ता डोगरी।
सन 1967 में 21वें संविधान संशोधन द्वारा सिंधी भाषा 8वीं अनुसूची में जोड़ी गई थी। सन 1992 में 71वें संविधान संशोधन द्वारा कोंकणी, नेपाली तथा मणिपुरी भाषाएँ 8वीं अनुसूची में जोड़ी गई थीं। सन 2003 में 92वें संविधान संशोधन द्वारा संथाली, मैथिली, बोडो तथा डोगरी भाषाएँ 8वीं अनुसूची में जोड़ी गई थीं।
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किसी राष्ट्र के समस्त देशवासियों में सच्चा प्रेम ,संगठन और एकता की भावना भरने के लिए एक राष्ट्र भाषा का होना आवश्यक है ,इस बात से कोई बुद्धिमान व्यक्ति इनकार नही कर सकता | हांलाकि आज कहने को तो हिन्दी भारत की राष्ट्र भाषा है किन्तु उसे वह अधिकार नहीं मिल पा रहा है जिसकी आधिकारिणी है | वास्तव में हिन्दी भारतीयों की भावात्मक अभिव्यक्ति का एकमात्र साधन है | इसके अभाव में भारतीयता की अभिव्यक्ति हो ही नही सकती | यह भारत की आत्मा है |
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