आजकल आप बाहर नहीं जा पा रहे हैं। इस विषय पर दो मित्रों में सम्वाद लिखो।
Answers
गरमी की छुट्टी बिताकर लौटे दो मित्रों की बातचीत का संवाद लेखन कीजिए।
उत्तर:
शरद – नमस्ते अमर! कैसे हो?
अमर – नमस्ते! शरद मैं तो ठीक हूँ। कहो इस बार कहाँ घूमने गए थे।
शरद – मैं अपने दादा-दादी के पास इलाहाबाद घूमने गया था।
अमर – तुम्हारे दादा-दादी शहर में ही रहते हैं क्या?
शरद – नहीं शरद वहाँ से आठ किलोमीटर दूर एक गाँव में।
अमर – फिर तो गाँव में बड़ा मज़ा आया होगा!
शरद – ताज़ी हवा, खुला वातावरण, गंगा नदी का किनारा, कलरव करते पक्षी, ताजे फल और सब्जियाँ सब कुछ बहुत अच्छा था वहाँ।
अमर – प्रकृति के करीब जाने का अपना अलग ही आनंद है।
शरद – पर अमर तुम कहाँ गए थे, इन छुट्टियों में?
अमर – मैं देहरादून गया था।
शरद – इलाहाबाद में तो बड़ी गरमी थी, पर देहरादून में इतनी गरमी न रही होगी।
अमर – असली मज़ा तो मसूरी में आया। वहाँ गरमी न थी।
शरद – यही तो अपने देश का मज़ा है, कही गरमी है तो कहीं सरदी।
अमर – तभी तो अपना भारत महान है।
प्रश्नः
बढ़ती रिश्वतखोरी के संबंध में दो मित्रों के मध्य संवाद लिखिए।
उत्तर:
केशव – नमस्ते अनुज! क्या हालचाल है?
अनुज – नमस्ते केशव! सब ठीक-ठाक है।
केशव – इस धूप में कहाँ से चले आ रहे हो? अनुज
अनुज – बिजली के दफ्तर से।
केशव – क्या समस्या आ गई?
अनुज – केशव पिछले चार बार से दफ़्तर वाले तीन-चार गुना तक बिल भेज रहे हैं। जब भी जाओ, कह देते हैं कि इस बार जमा करा दो, अगली बार ठीक हो जाएगा।
केशव – उन्होंने बिल ठीक कर दिया?
अनुज – नहीं केशव। कल कार्यालय से एक आदमी आया था। उसने कुछ कागज, पुराने बिलों की फोटोप्रति ली और ऑफिस आने को कहा।
केशव – क्या आज वह मिला फिर?
अनुज – फिर क्या, आज वही व्यक्ति दफ्तर में मिला और बिल ठीक करने के पाँच हजार रुपए रिश्वत माँग रहा है।
केशव – अनुज हर दफ़्तर का यही हाल है। बिना कुछ दिए कोई काम होता ही नहीं।
अनुज – मैं तो रिश्वत दूंगा नहीं। मैं इसकी शिकायत करूँगा।
केशव – तुमने ठीक ही सोचा है। मैं भी तुम्हारा साथ दूंगा।
अनुज – जी धन्यवाद।