आजकल बहुत से फ़ौजी मकान गिर चुके हैं । दुर्ग के किसी भाग में , जहाँ किसानों ने अपना बसेरा बना लिया है , वहाँ घर कुछ आबाद दिखाई पड़ते हैं । ऐसा ही परित्यक्त एक चीनी किला था । हम वहाँ चाय पीने के लिए ठहरे । तिब्बत में यात्रियों के लिए बहुत सी तकलीफ़े भी हैं और कुछ आराम की बातें भी । वहाँ जाति - पाँति , छुआछूत का सवाल ही नहीं है और न औरतें परदा ही करती हैं । बहुत निम्न श्रेणी के भिखपगों को लोग चोरी के डर से घर के भीतर नहीं आने देतेः नहीं तो आप बिलकुल घर के भीतर चले जा सकते हैं । चाहे आप बिलकुल अपरिचित हों , तब भी घर को सासु को अपनी झोली में से चाय दे सकते हैं । वह आपके लिए उसे पका देगी । मक्खन और सोडा - नमक दे दीजिए , वह चाय चोङी में कूटकर उसे दूधवाली चाय के रंग की बना के मिट्टी के टोटीदार बरतन ( खोटी ) में रखके आपको दे देगी । यदि बैठक की जगह चूल्हे से दूर है और आपको डर है कि सारा मक्खन आपकी चाय में नहीं पड़ेगा . तो आप खुद जाकर चोङी में चाय मथकर ला सकते हैं । चाय का रंग तैयार हो जाने पर फिर नमक - मक्खन डालने की जरूरत होती है ।
ANSWER THE FOLLOWING:
क - दुर्ग में क्या परिवर्तन आया ?
ख- यात्रा में लेखक के साथ कौन था ? नाम लिखिए ।
ग- तिब्बती समाज की दो विशेषताएँ लिखिए ।
घ - किस प्रकार के लोगों को घर में घुसने नहीं दिया जाता था?
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unke liye salam jai hind jai bharat
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