आजकल के समाज में कभी - कभी बुज़ुर्ग अपने पररिार में बहुत ही उपेक्षित स्थिति में जीने को मजबूर हैं| बुज़ुर्ग की दशा को सुधारने के लिए अपने बच्चों और युवा पीढ़ी को उनसे कैसे जोड़ा जा सकता है? इस विषय पर 80-100 शब्दों में एक अनुच्छेद लिखिएI कृपया जल्द से जल्द बतायेI
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Explanation:
हमारे देश में अन्तर्राष्ट्रीय दिवसों का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। अगस्त माह में अनेक अन्तर्राष्ट्रीय दिवस आयोजित होते हैं जैसे युवा दिवस, मित्रता दिवस, हिरोशिमा दिवस, स्तनपान दिवस, आदिवासी दिवस, मच्छर दिवस, फोटोग्राफी दिवस, मानवीय दिवस आदि-आदि उनमें एक महत्वपूर्ण दिवस है विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस जो 8 अगस्त को पूरी दुनिया में वृद्धों को समर्पित किया गया है। यह दिवस वरिष्ठ नागरिकों के उन्नत, स्वस्थ एवं खुशहाल जीवन के लिये आयोजित होता है। इस दिवस को आयोजित करने की आवश्यकता इसलिये पड़ी कि आज के वरिष्ठ नागरिक जो दुनियाभर में उपेक्षा के शिकार हो रहे हैं, उनको उचित सम्मान एवं उन्नत जीवन जीने की दिशाएं मिलें।
वर्तमान दौर की एक बहुत बड़ी विडम्बना है कि इस समय की बुजुर्ग पीढ़ी घोर उपेक्षा और अवमानना की शिकार है। यह पीढ़ी उपेक्षा, भावनात्मक रिक्तता और उदासी को ओढ़े हुए है। इस पीढ़ी के चेहरे पर पड़ी झुर्रियां, कमजोर आंखें, थका तन और उदास मन जिन त्रासद स्थितियों को बयां कर रही है उसके लिए जिम्मेदार है हमारी आधुनिक सोच और स्वार्थपूर्ण जीवन शैली। समूची दुनिया में वरिष्ठ नागरिकों की दयनीय स्थितियां एक चुनौती बन कर खड़ी हैं, एक अन्तर्राष्ट्रीय समस्या बनी हुई हैं।
समय का तकाजा है कि हम उन सभी रास्तों को छोड़ दें जहां शक्तियां बिखरती हैं। जहां भी हमारे प्रयत्न दुर्बल होते हैं उद्देश्यों को नीचा देखना पड़ता है और आत्मविश्वास जल्दी थक जाता है। वृद्ध पीढ़ी को संवारना, उपयोगी बनाना और उसे परिवार की मूलधारा में लाना एक महत्वपूर्ण उपक्रम है। इसके लिए हमारे प्रबल पुरुषार्थ और दृढ़ संकल्प की जरूरत है। हमें स्कूलों में पैरेंट्स-डे के स्थान पर ग्रांड-पैरेंट्स-डे मनाना चाहिए। इससे जहां बच्चे अपने दादा-दादी के अनुभवों से लाभांवित होंगे वहीं दादा-दादी को बच्चों के इस तरह के दायित्व से जुड़कर एक सक्रियता मिलेगी। इसी तरह के उपक्रम हम घरेलू, धार्मिक एवं सामाजिक स्तर पर भी कर सकते हैं। हर दिन परिवार में एक संगोष्ठी का क्रम शुरू करके उसमें परिवार के वृद्धजनों के विचारों का लाभ लें और उनसे प्रशिक्षण प्राप्त करें। नई पीढ़ी को संस्कार संपन्न बनाने में वृद्धजनों की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। सामाजिक स्तर पर भी बुजुर्ग और नई पीढ़ी की संयुक्त संगोष्ठियां आयोजित की जाएं और उनके अनुभवों का लाभ लिया जाए। बड़े व्यावसायिक घरानों या व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में भी परिवार के बुजुर्गों को कुछ रचनात्मक एवं सृजनात्मक दायित्व दिए जाएं और उनकी क्षमता और ऊर्जा का उपयोग किया जाए। परिवार के आयोजनों और दिनचर्या में कुछ दायित्व वृद्धजनों को दिए जाएं जिन्हें वे आसानी से संचालित कर सकें। इन सब प्रयत्नों से बुजुर्ग पीढ़ी अपने आपको उपेक्षित महसूस नहीं कर पाएगी और उनके अनुभवों का लाभ एक नई छटा का निर्माण करेगी। इस वृद्ध पीढ़ी का हाथ पकड़ कर चलने से जीवन में उत्साह का संचार होगा, क्योंकि इनका विश्वास सामूहिकता में है, सबको साथ लेकर चलने में है। अकेले चलना कोई चलना नहीं होता, चलते-चलते किसी दूसरे को भी चलने के लिये प्रोत्साहित करें।