Hindi, asked by jankeeupadhyay51, 11 hours ago

आजकल समाज में अराजकता बढ़ती जा रही है। अराजकता के कारण बताते हुए दुष्परिणाम स्पष्ट कीजिये|
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Answered by shardakuknaa
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Answer:

अराजकता (anarchy) एक आदर्श है जिसका सिद्धांत अराजकतावाद (Anarchism) है। अराजकतावाद राज्य को समाप्त कर व्यक्तियों, समूहों और राष्ट्रों के बीच स्वतंत्र और सहज सहयोग द्वारा समस्त मानवीय संबंधों में न्याय स्थापित करने के प्रयत्नों का सिद्धांत है। अराजकतावाद के अनुसार कार्यस्वातंत्र्य जीवन का गत्यात्मक नियम है और इसीलिए उसका मंतव्य है कि सामाजिक संगठन व्यक्तियों के कार्य स्वातंत्र्य के लिए अधिकतम अवसर प्रदान करे। मानवीय प्रकृति में आत्मनियमन की ऐसी शक्ति है जो बाह्य नियंत्रण से मुक्त रहने पर सहज ही सुव्यवस्था स्थापित कर सकती है। मनुष्य पर अनुशासन का आरोपण ही सामाजिक और नैतिक बुराइयों का जनक है। इसलिए हिंसा पर आश्रित राज्य तथा उसकी अन्य संस्थाएँ इन बुराइयों को दूर

Answered by himanshuak354
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  • यह राजनीति विज्ञान की वह विचारधारा है जिसमें राज्य की उपस्थिति को अनावश्यक माना जाता है। इस सिद्धांत के अनुसार किसी भी तरह की सरकार अवांछनीय है। इसमें साधारणतः यह तर्क दिया जाता है कि मनुष्य मूलतः विवेकशील, निष्कपट और न्यायपरायण प्राणी है। अतः यदि समाज सही ढंग से संगठित हो तो किसी प्रकार के बल प्रयोग की आवश्यकता ही नहीं रहेगी। ऐसी स्थिति में राज्य की उपस्थिति स्वतः अप्रासंगिक हो जायगी।
  • अराजकतावादी चिंतन का इतिहास प्राचीन काल के यूनानी दार्शनिकों तक जाता है। स्टोइक चिंतक, ख़ास तौर से ज़ेनो (ईसा पूर्व 336-264) इसके लिए मशहूर हैं। आधुनिक युग में अराजकतावाद की सबसे महत्त्वपूर्ण व्याख्या करने श्रेय गॉडविन की 1793 में प्रकाशित कृति 'ऐन इनक्वारी कंसर्निंग पॉलिटिकल जस्टिस ऐंड इट्स इनक्रलुएंस ऑन जनरल वर्चू ऐंड हैपीनैस' को जाता है। लेकिन ख़ुद को अराजकतावादी कहने वाले पहले दार्शनिक उन्नीसवीं सदी के पूर्वार्ध में सक्रिय रहे फ़्रांसीसी चिंतक पिएर जोसेफ़ प्रूधों थे। जहाँ तक लक्ष्यों और कल्पनाशीलता का सवाल है, अराजकतावादियों में मतैक्य दिखता है। पर अपने ख़यालों की दुनिया को धरती पर उतारने के प्रश्न पर उनके बीच मतभेद पाये जाते हैं। मोटे तौर पर अराजकतावादियों की चार धाराएँ पायी जाती हैं : व्यक्तिवादी, परस्परतावादी, सामूहिकतावादी और साम्यवादी।
  • सामूहिकतावादी अराजकतावाद के प्रमुख चिंतक बकूनिन माने जाते हैं। सामूहिकतावादियों को न तो प्रूधों द्वारा की गयी छोटे किसानों और कारीगरों की तरफ़दारी पसंद थी और न ही वे कार्ल मार्क्स द्वारा प्रवर्तित समाजवादी विचार के समर्थक थे। मार्क्स के कम्युनिज़म को अधिनायकवादी करार देने वाला यह विचार एक ऐसे भविष्य की कल्पना करता है जिसमें मज़दूर संगठित हो कर पूँजी को अपने हाथ में ले लेंगे। संगठित मज़दूरों के हाथ में ही उत्पादन के साधन रहेंगे। सामूहिक फ़ैसले के आधार पर आमदनी का वितरण होगा। जो जितना श्रम करेगा उसका हिस्सा भी उतना ही बड़ा होगा।
  • परस्परतावादी अराजकतावाद व्यक्तिवाद और सामूहिकतावाद बीच रास्ता था जिसके सूत्रीकरण का श्रेय प्रूधों को जाता है। प्रूधों ने सम्पत्ति और कम्युनिज़म के बीच तालमेल बैठाते हुए एक ऐसी आर्थिक प्रणाली की वकालत की जिसके तहत व्यक्ति को निजी या सामूहिक तौर पर अपने उत्पादन के साधनों (जैसे औज़ार, ज़मीन आदि) का मालिक होने का अधिकार तो होगा, पर उसे उजरत अपने श्रम के मुताबिक ही मिलेगी ताकि समाज में समानता कायम रखी जा सके।

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