आजकल दूरदर्शन पर किशोरों के लिए कार्यक्रमों की जरूरत बताते हुए प्रकाशन के लिए संपादक को पत्र लिखने
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पत्र लेखन
मनुष्य सामाजिक प्राणी है। वह अपने निकट संबंधियों का दुख-सुख जानने का इच्छुक रहता है। इसके लिए वह पत्रों का सहारा लेता आया है। पत्र-लेखन एक विशिष्ट कला है। यह हमारे विचारों के आदान-प्रदान का एक सरल और सशक्त माध्यम है। यह लेखन की अन्य विधाओं से भिन्न है क्योंकि पत्र-लेखन किसी मित्र, निकट संबंधी, अधिकारी, कर्मचारी या संस्था प्रमुख को संबोधित करके लिखा जाता है। इसमें लेखक और पाठक के बीच कुछ-न-कुछ संबंध भी रहता है।पत्र-लेखन में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-
सरलता-पत्र की भाषा सरल, स्पष्ट तथा बोधगम्य होनी चाहिए जिससे पाठक पत्र का उद्देश्य एवं भाव स्पष्ट रूप से समझ सके। पत्र में जटिल और अस्पष्ट भाषा के प्रयोग से बचना चाहिए।
संक्षिप्तता–पत्र लिखते समय यह प्रयास होना चाहिए कि कम-से-कम शब्दों में अपनी बात को स्पष्ट कर सकें। ज़्यादा लंबे पत्रों में नीरसता प्रकट होने लगती है।
शिष्टता-पत्र-लेखन में सदैव शिष्टता बनाए रखनी चाहिए। कटु बातों को लिखते समय शिष्ट एवं मर्यादित भाषा का ही प्रयोग करना चाहिए।
निश्चयात्मकता-पत्र-लेखन में अपनी बातों में निश्चितता बनाए रखनी चाहिए। बातों में दुविधा या हिचक से बचना चाहिए।
पुनरुक्तिहीनता-पत्र में एक ही बात की पुनरुक्ति से पत्र की प्रभावहीनता बढ़ती जाती है।