Hindi, asked by dandriyalakanksha200, 9 months ago

आजकल धरती का तापमान कुछ सामान्य सा प्रतीत होने लगा है । इस पर निबंध लिखे ।

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Answered by veer25316
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पृथ्वी सूर्य से ऊर्जा प्राप्त करती है और यही ऊर्जा इसकी सतह को गर्माती है। इस ऊर्जा का लगभग एक तिहाई भाग पृथ्वी को घेरने वाले गैसों के आवरण, जिसे वायुमंडल कहा जाता है, से गुजरते वक्त तितर-बितर हो जाता है। इस प्राप्त ऊर्जा का कुछ हिस्सा धरती और समुद्र की सतह से टकराकर वायुमंडल में परावर्तित हो जाता है। शेष हिस्सा, जो लगभग 70 प्रतिशत होता है, धरती को गर्माने के लिए रह जाता है। इसलिए, संतुलन बनाए रखने के लिए जरूरी है कि सौर ऊर्जा का कुछ भाग पृथ्वी से वापस वायुमंडल में परावर्तित हो, वरना धरती असहनीय रूप से गर्म हो जाएगी। वायुमंडल में भी जलवाष्प और कार्बन डाइऑक्साइड सरीखी कुछ गैसें इस परावर्तित ऊर्जा के कुछ अंश को सोख लेती हैं जिससे तापमान का स्तर ‘सामान्य सीमा’ में रखा जा सके । इस ‘आवरण प्रभाव’ की अनुपस्थिति में पृथ्वी अपने सामान्य तापमान से 30 डिग्री सेल्सियस अधिक सर्द हो सकती है।

चूंकि जलवाष्प, कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी गैसें हमारे विश्व को गर्म रखती हैं, इसलिए इन्हें ‘ग्रीनहाउस गैसें’ कहा जाता है। यहां यह तथ्य बहुत महत्वपूर्ण हैं कि इस प्राकृतिक ‘ग्रीनहाउस प्रभाव’ की अनुपस्थिति में हमारे ग्रह का औसत सतही तापमान यहां जीवन के लिए प्रतिकूल होता और इस ग्रह पर भी जीवन की संभावना नहीं रहती। इस प्रभाव को सर्वप्रथम एक फ्रांसीसी वैज्ञानिक जीन बैपटिस्ट फोरियर ने प्रस्तुत किया था। उन्होंने वायुमंडल एवं नियंत्रित परिस्थितियों में पौधे उगाने के लिए प्रयुक्त ग्रीनहाउस में होने वाली क्रियाओं में समानताओं को इंगित किया था।

हालांकि प्राकृतिक ग्रीनहाउस प्रभाव सदा से अपना कार्य करता आ रहा है और पृथ्वी को जीवन के लिए अनुकूल बनाए हुए है, परंतु लगभग पिछली एक सदी के दौरान मानवीय गतिविधियों, विशेषकर जीवाश्म ईंधन के दहन जैसी क्रियाओं ने इतनी अधिक मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड और दूसरी ग्रीनहाउस गैसें उत्सर्जित की हैं कि इनसे इस ग्रह की जलवायु के लिए खतरा पैदा हो गया है और इसी के चलते ‘ग्लोबल वार्मिंग’ या वैश्विक तापवृद्धि की समस्या आज हमारे सामने खड़ी है। औद्योगिक काल से पहले की स्थितियों की तुलना में आज वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में 30 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हो चुकी है।

वैश्विक तापवृद्धि, जैसा कि नाम से ही विदित होता है, पृथ्वी की सतह से समीप की हवा और महासागरों के औसत तापमान में वृद्धि को कहा जाता है। अब इस सच्चाई में कोई संदेह नहीं है कि पृथ्वी पर हाल के वर्षों में बढ़ी तपिश के लिए मानवीय गतिविधियों के चलते कार्बन डाइऑक्साइड और दूसरी ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन जिम्मेदार है। इन गतिविधियों में औद्योगिक प्रक्रियाएं, जीवाश्म ईंधन का दहन और वनोन्मूलन जैसे ज़मीन के प्रयोग में बदलाव सम्मिलित है। पृथ्वी की जलवायु पर प्रभाव डालने के अतिरिक्त वैश्विक तापवृद्धि, मानव स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है। यह कार्य प्रत्यक्ष रूप से बढ़ते तापमान द्वारा रोग की स्थितियों पर प्रभाव डालकर किया जा सकता है अथवा परोक्ष रूप से खाद्य उत्पादन, जल वितरण या अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर वैश्विक तापवृद्धि मानव स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव डाल सकती है। बढ़ती तपिश पहले से ही गरीबों और इस समस्या से जूझ रहे राष्ट्रों पर अत्यंत घातक प्रभाव डालेगी। यह एक ऐसा मुद्दा है कि हम सभी को, खासतौर पर चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े वर्ग को इसे अत्यंत गंभीरता से लेना होगा।
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