आकाश का साफ़ा बाँधकर
सूरज की चचलम खींचता
बैठा है पहाड़,
घुटनों पर पड़ी हैनदी चादर-सी
पास ही दहक रही है
पलाश के जंगल की अँगीठी
अंधकार दरू पूवश में
भसमटा बैठा है िेड़ों के गल्ले-सा
क. कविता द्वारा शाम का चित्रण टीस रूप में किया गया है ?
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pahad ke roop me kiya gaya hai
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