Aakash ka Safa Kisne Bandha Hai
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शाम एक किसान कविता की व्याख्या
कवि को पहाड़ किसी किसान की तरह लगता है, जो की आकाश का साफा बांधकर बैठा है। वह सूरज को चिलम की तरह पी रहा है। पर्वत रूपी चादर किसान के घुटनों के पास नदी चादर सी बह रही है। पास के पलास के जंगलों को अंगीठी जल रही है।
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