Hindi, asked by manjeet1998, 1 year ago

आख्यानपरक लेखन की विशेषताएँ बताइए

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Answered by CBSEMP
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आख्यान शब्द आरंभ से ही सामान्यत: कथा अथवा कहानीके अर्थ में प्रयुक्त होता रहा है। तारानाथकृत "वाचस्पत्यम्" नामक कोश के प्रथम भाग में, इसकी व्युत्पत्ति "आख्यायते अनेनेति आख्यानम्" दी है। साहित्यदर्पण में आख्यान को "पुरावृत कथन" (आख्यानं पूर्ववृतोक्ति) कहा गया है। डॉ॰ एस.के. दे के मतानुसार ऋग्वेद के कथात्मक सूक्त वस्तुत: पौराणिक और निजंधरी आख्यान ही है[1]। यास्क ने निरुक्त(11.15) में सरमा पणीस की कथा को आख्यान कहा है।
Answered by rohit381
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आख्यान शब्द आरंभ से ही सामान्यत: कथा अथवा कहानी के अर्थ में प्रयुक्त होता रहा है। तारानाथकृत "वाचस्पत्यम्" नामक कोश के प्रथम भाग में, इसकी व्युत्पत्ति "आख्यायते अनेनेति आख्यानम्" दी है। साहित्यदर्पणमें आख्यान को "पुरावृत कथन" (आख्यानं पूर्ववृतोक्ति) कहा गया है। डॉ॰ एस.के. दे के मतानुसार ऋग्वेद के कथात्मक सूक्त वस्तुत: पौराणिक और निजंधरी आख्यान ही है[1]। यास्क ने निरुक्त (11.15) में सरमा पणीसकी कथा को आख्यान कहा है।

आख्यान, आख्यायिका एवं कथा

"आख्यान" और संस्कृत "आख्यायिका" दोनों के वर्णविन्यासों में सादृश्य होने के कारण ही संभवत: हिंदी के कुछ विद्वान् "आख्यायिका" के शास्त्रीय लक्षणों को "आख्यान" के ऊपर लागू करके उसके स्वरूपसंपादन का प्रयास करते रहे हैं। किंतु संस्कृत के लक्षणशास्त्रों में परस्पर कुछ ऐसे मौलिक विरोध वर्तमान हैं कि उन्हें एक दूसरे का समानार्थक नहीं माना जा सकता। संस्कृत में आख्यायिका की श्रेणी की एक गद्यबद्ध रचना और भी होती थी,जिसे 'कथा' कहते थे। भामह ने काव्यालंकार (1.25, 28) में सुंदर गद्य में रचित सरस कहानी को "आख्यायिका" कहा है। यह उच्छ्वासों में बँटी होती थी ओर इसमें नायक अपने वृत्त तथा चेष्टा का वर्णन स्वयं करता था। बीच-बीच में वक्त्र और अपवक्त्र छंद आ जाते थे, जबकि कथा में वक्त्र और अपवक्त्र छंद नहीं होते थे, न ही इसका विभाजन उच्छ्वासों में होता था।

श्री परशुराम चतुर्वेदी ने लिखा है कि "आख्यायिका" की विशेषता इस बात में पाई जाती है कि वह स्वयं किसी अपने पात्र द्वारा ही कही गई होती है जिस कारण उसकी बहुत सी बातें आत्मोद्गारपरक बन जाती हैं। प्रेमाख्यानवाले "आख्यान" शब्द का मूल अर्थ भी किसी ऐसी विशेषता की ही ओर संकेत करता जाना पड़ता है। "महाभारत" एवं "रामायण" के "आख्यान" कहे जाने की सार्थकता भी कदाचित् इसी बात में निहित होगी कि उनके रचयिता क्रमश: व्यास एवं वाल्मीकि ने अपनी देखी सुनी बातें हीं लिखी थीं, उनमें कल्पना का वैसा अंश नहीं रहता, जो कथा के संबंध में प्राय: आवश्यक माना जाएा करता है। आख्यान शब्द को इसी कारण अपेक्षाकृत अधिक "वृत्तांतपरक" और तदनुसार विशुद्ध भी कह सकते हैं। अतएव प्रेमकहानी के भी मूल रूप में वस्तुत: "आपबीती" जैसी ही होने से "प्रेम" शब्द के साथ किए गए इसके प्रयोग को सर्वथा उपयुक्त समझना चाहिए 


rohit381: marks it brainliest
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