आलो-आँधारि रचना बेबी की व्यक्तिगत समस्याओं के साथ-साथ कई सामाजिक मुद्दों को | समेटे है। किन्हीं दो मुख्य समस्याओं पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
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➲ ‘बेबी हालदार’ द्वारा लिखित ‘आलो आंधारि’ नामक पाठ से समाज की कड़वी सच्चाई उजागर होती है। पाठ में लेखिका के साथ हुई घटना से यह पता चलता है कि पुरुष सत्तात्मक समाज में पुरुष के बिना स्त्री को अधूरा समझा जाता है।
इस कहानी में एक परित्यक्त्या स्त्री के जीवन संघर्ष और पुरुष सत्तात्मक समाज की संकीर्णताओं पर ध्यान केंद्रित किया है।
‘आलो आंधारि’ एक ऐसी स्त्री के जीवन की कहानी है, जो बेहद गरीब और नेपाली है। जिसका जीवन कठिन संघर्षों से भरा रहा। समाज में एक परित्यक्ता स्त्री के साथ लोग कैसा व्यवहार करते हैं यह इस पाठ के माध्यम से बताया गया है।
‘आलो आंधारि’ लेखिका के जीवन की आत्मकथा है, जिसमें उसने अपने जीवन काल में घटी घटनाओं को सिलसिलेवार ढंग से प्रस्तुत किया है। उसने इस पाठ के माध्यम से अपने जीवन के संघर्ष को बताया। लेखिका ने घरेलू व सामाजिक समस्याओं से जूझकर व घरेलू नौकरानी जैसे काम करते हुए भी एक पुस्तक की रचना कर डाली। लेखिका का जन्म कश्मीर में हुआ था और बहुत कम उम्र में ही उसकी शादी उससे बहुत अधिक उम्र के व्यक्ति से कर दी गई थी। पति के साथ उसकी जमी नहीं और उसने पति के अत्याचारों से तंग आकर अपने बच्चों सहित पति का घर छोड़ दिया। घरेलू नौकरानी के रूप में कई जगह कार्य किया। अंत में उसे तातुश के यहां घरेलू नौकरानी की काम मिला और यहीं से उसकी जीवन में परिवर्तन हुआ, जब उसे तातुश से किताब लिखने की प्रेरणा मिली और उसने अपने जीवन के संघर्ष को अपनी आत्मकथा के माध्यम से पुस्तक के रूप में होकर अपनी भावनाओं को प्रकट किया।
व्याख्या ⦂
✎... ये कहानी बेबी हालदार की आत्मकथा होने के साथ-साथ एक ऐसी की दुनिया के बारे में भी बतलाता है, जो दुनिया जो हमारे आस पड़ोस में बसी मिल जायेगी है। ये दुनिया है अभाव ग्रस्त गरीब और असहाय लोगों की जिन्हे अपनी जिंदगी जीने के लिये हालातों से किस तरह जूझना पड़ता है। ऐसी दुनिया में झांकने में हमें शर्मिंदगी महसूस होती हैं, क्योंकि हम अपनी सुख-सुविधाओं में इतना खोये है कि हमे अपने आस-पास ही व्याप्त दुख का एहसास नही हो पाता, न हम उसको जानने की चेष्टा करते हैं। एक ऐसी संसार जिसमें लोग अभावों से ग्रस्त हैं, जीवन में कठोर संघर्ष कर रहे हैं, ऐसे लोगों के विषय में जानने की फुर्सत हमारे पास नहीं है। समाज में परित्यक्ता स्त्री को कितनी कठिनाई से जीवन बिताना पड़ता है, इस पाठ में यह भी दर्शाया गया है. इसके साथ ही घरेलू नौकरों की दयनीय हालत का भी पाठ में वर्णन है।
लेखिका जो कि अपने पति से अलग अपने तीन बच्चों के साथ अकेली रहती थी, उसको बिना पुरुष के सहारे अपने जीवन यापन के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। वह पहले जहाँ रहती थी तो वहाँ लोग उसको अकेले रहते देखकर तरह-तरह के सवाल करते पर फब्तियां कसते और उसको देखकर कानाफूसी करते। वह काम ढूँढने जाती तो भी लोग तरह-तरह के सवाल करते, कि अकेली क्यों रहती है?, उसका स्वामी किधर है? इसी तरह काम ढूँढते और मकान तलाशते तलाशते उसने लोगों की गंदी नजरों और गंदी सोच का सामना करते हुए संघर्ष में जीवन बिताया।
पुरुष के बिना रहने वाली अकेली स्त्री को समाज में कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता हैं, पाठ के निम्नलिखित अंशों के माध्यम से यह सच्चाई उजागर होती है।
‘बच्चों के साथ घर में अकेले रहते देख आसपास के सभी लोग पूछते, तुम यहां अकेली क्यों रहती हो? तुम्हारा स्वामी क्यों नहीं आता? किसी किसी दिन घर पहुंचने में देर हो जाती तो मकान मालिक की स्त्री उसने चली आती कि इतनी देर कहां हुई? वो कहती कहां जाती है, रोज-रोज। तेरा स्वामी नहीं है तू तो अकेली रहती है तुझे इतना घूमने फिरने की क्या जरूरत। जब मैं बच्चों के साथ कहीं जा रही होती तो लोग तरह-तरह के बातें करते। सीटियां मारते, ताने मारते।
लेखिका द्वारा पुस्तक में किए गए इन हवाओं से वर्तमान समय में युवाओं की सामाजिक स्थिति के विषय में पता चलता है कि अकेली स्त्री के लिए इस पुरुष सत्तात्मक समाज में रहना कितना कठिन है।
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आलो-आँधारि रचना बेबी की व्यक्तिगत समस्याओं के साथ-साथ कई सामाजिक मुद्दों को | समेटे है। किन्हीं दो मुख्य समस्याओं पर अपने विचार प्रकट कीजिए।