Aalekh lekhan in holi In hindi?
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होली' भारतीय समाज का एक प्रमुख त्यौहार
भारत संस्कृति में त्योहारों एवं उत्सवों का आदि काल से ही काफी महत्व रहा है। हमारी संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहाँ पर मनाये जाने वाले सभी त्यौहार समाज में मानवीय गुणों को स्थापित करके लोगों में प्रेम, एकता एवं सद्भावना को बढ़ाते हैं। भारत में त्योहारों एवं उत्सवों का सम्बन्ध किसी जाति, धर्म, भाषा या क्षेत्र से न होकर समभाव से है। यहाँ मनाये जाने वाले सभी त्योहारों के पीछे की भावना मानवीय गरिमा को समृद्धि प्रदान करना होता है। यही कारण है कि भारत में मनाये जाने वाले त्योहारों एवं उत्सवों में सभी धर्मों के लोग आदर के साथ मिलजुल कर मनाते हैं। होली भारतीय समाज का एक प्रमुख त्यौहार है, जिसकी लोग बड़ी उत्सुकता से प्रतीक्षा करते हैं।
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होली की एक अलग ही उमंग और मस्ती होती है जो अनायास ही लोगों के दिलों में गुदगुदी व रोमांच से भर देती है। खेतों में गेहूं चने की फसल पकने लगती है। जंगलों में महुए की गंध मादकता भर देती है। कहीं आम की मंजरियों की महक वातावरण को बासन्ती हवा के साथ उल्लास भरती है तो कहीं पलाश दिल को हर लेता है। ऐसे में फागुन मास की निराली हवा में लोक संस्कृति परम्परागत परिधानों में आन्तरिक प्रेमानुभूति के सुसज्जित होकर चारों और मस्ती भंग आलम बिखेरती है जिससे लोग जिन्दगी के दुख-दर्द भूलकर रंगों में डूब जाते है। शीत ऋतु की विदाई एवं ग्रीष्म ऋतु के आगमन की संधि बेला में युग मन प्रणय के मधुर सपने सजोये मौसम के साथ अजीव हिलौरे महसूस करता है जब सभी के साथ ऐसा हो रहा हो तो यह कैसे हो सकता है कि ब्रज की होली को बिसराया जा सके। हमारे देश के गॉव-गॉव में ढ़ोलक पर थाप पड़ने लगती है,झांझतों की झंकार खनखता उठती है और लोक गीतों के स्वर समूचे वातावरण को मादक बना देते है। आज भी ब्रज की तरह गांवों व शहरों के नरनारी बालक-वृद्घ सभी एकत्रित होकर खाते है पीते -गाते है और मस्ती में नाचते है।
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more...होली के विविध रंग : जीवन के संग - ललित गर्ग
भारतवर्ष की ख्याति पर्व-त्यौहारों के देश के रूप में है। प्रत्येक पर्व-त्यौहार के पीछे परंपरागत लोकमान्यताएं एवं कल्याणकारी संदेश निहित है। इन पर्व-त्यौहारों की श्रृंखला में होली का विशेष महत्व है। इस्लाम के अनुयायियों में जो स्थान ‘ईद' का है, ईसाइयों में ‘क्रिसमस' का है, वही स्थान हिंदुओं में होली का है। होली का आगमन इस बात का सूचक है कि अब चारों तरफ वसंत ऋतु का सुवास फैलनेवाला है। यह पर्व शिशिर ऋतु की समाप्ति और ग्रीष्म ऋतु के आगमन का प्रतीक है। वसंत के आगमन के साथ ही फसल पक जाती है और किसान फसल काटने की तैयारी में जुट जाते हैं। वसंत की आगमन तिथि फाल्गुनी पूर्णिमा पर होली का आगमन होता है, जो मनुष्य के जीवन को आनंद और उल्लास से प्लावित कर देता है।
होली का पर्व मनाने की पृष्ठभूमि में अनेक पौराणिक कथाएं एवं सांस्कृतिक घटनाएं जुड़ी हुई हैं। पौराणिक कथा की दृष्टि से इस पर्व का संबंध प्रह्लाद और होलिका की कथा से जोड़ा जाता है। प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यप नास्तिक थे तथा वे नहीं चाहते थे कि उनके घर या पूरे राज्य में उन्हें छोड़कर किसी और की पूजा की जाए। जो भी ऐसा करता था, उसे जान से मार दिया जाता था। प्रह्लाद को उन्होंने कई बार मना किया कि वे भगवान विष्णु की पूजा छोड़ दे, परंतु वह नहीं माना। अंततः उसे मारने के लिए उन्होंने अनेक उपाय किए, परंतु सपफल नहीं हुए। हिरण्यकश्यप की बहन का नाम होलिका था, जिसे यह वरदान प्राप्त था कि वह अग्नि मंे नहीं जलेगी। हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ जाए ताकि प्रह्लाद जलकर राख हो जाए। होलिका प्रह्लाद को लेकर जैसे ही आग के ढेर पर बैठी, वह स्वयं जलकर राख हो गई, भक्त प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ। बाद में भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया। उसी समय से होलिका दहन और होलिकोत्सव इस रूप में मनाया जाने लगा कि वह अधर्म के ऊपर धर्म, बुराई के ऊपर भलाई और पशुत्व के ऊपर देवत्व की विजय का पर्व है। एक कथा यह भी प्रचलित है कि जब भगवान श्रीकृष्ण ने दुष्टों का दमन कर गोपबालाओं के साथ रास रचाया, तब से होली का प्रचलन शुरू हुआ। श्रीकृष्ण के संबंध में एक कथा यह भी प्रचलित है कि जिस दिन उन्होंने पूतना राक्षसी का वध किया, उसी हर्ष में गोकुलवासियों ने रंग का उत्सव मनाया था। लोकमानस में रचा-बसा होली का पर्व भारत में हिन्दुमतावलंबी जिस उत्साह के साथ मनाते हैं, उनके साथ अन्य समुदाय के लोग भी घुल-मिल जाते हैं। उसे देखकर यही लगता है कि यह पर्व विभिन्न संस्कृतियों को एकीकृत कर आपसी एकता, सद्भाव तथा भाईचारे का परिचय देता है। फाल्गुन की पूर्णिमा के दिन लोग घरों से लकड़ियां इकट्ठी करते हैं तथा समूहों में खड़े होकर होलिका दहन करते हैं। होलिका दहन के अगले दिन प्रातःकाल से दोपहर तक फाग खेलने की परंपरा है। प्रत्येक आयुवर्ग के लोग रंगों के इस त्यौहार में भागीदारी करते हैं। इस पर्व में लोग भेदभाव को भुलाकर एक दूसरे के मुंह पर अबीर-गुलाल मल देते हैं। पारिवारिक सदस्यों के बीच भी उत्साह के साथ रंगों का यह पर्व मनाया जाता है।
भारत संस्कृति में त्योहारों एवं उत्सवों का आदि काल से ही काफी महत्व रहा है। हमारी संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहाँ पर मनाये जाने वाले सभी त्यौहार समाज में मानवीय गुणों को स्थापित करके लोगों में प्रेम, एकता एवं सद्भावना को बढ़ाते हैं। भारत में त्योहारों एवं उत्सवों का सम्बन्ध किसी जाति, धर्म, भाषा या क्षेत्र से न होकर समभाव से है। यहाँ मनाये जाने वाले सभी त्योहारों के पीछे की भावना मानवीय गरिमा को समृद्धि प्रदान करना होता है। यही कारण है कि भारत में मनाये जाने वाले त्योहारों एवं उत्सवों में सभी धर्मों के लोग आदर के साथ मिलजुल कर मनाते हैं। होली भारतीय समाज का एक प्रमुख त्यौहार है, जिसकी लोग बड़ी उत्सुकता से प्रतीक्षा करते हैं।
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होली की एक अलग ही उमंग और मस्ती होती है जो अनायास ही लोगों के दिलों में गुदगुदी व रोमांच से भर देती है। खेतों में गेहूं चने की फसल पकने लगती है। जंगलों में महुए की गंध मादकता भर देती है। कहीं आम की मंजरियों की महक वातावरण को बासन्ती हवा के साथ उल्लास भरती है तो कहीं पलाश दिल को हर लेता है। ऐसे में फागुन मास की निराली हवा में लोक संस्कृति परम्परागत परिधानों में आन्तरिक प्रेमानुभूति के सुसज्जित होकर चारों और मस्ती भंग आलम बिखेरती है जिससे लोग जिन्दगी के दुख-दर्द भूलकर रंगों में डूब जाते है। शीत ऋतु की विदाई एवं ग्रीष्म ऋतु के आगमन की संधि बेला में युग मन प्रणय के मधुर सपने सजोये मौसम के साथ अजीव हिलौरे महसूस करता है जब सभी के साथ ऐसा हो रहा हो तो यह कैसे हो सकता है कि ब्रज की होली को बिसराया जा सके। हमारे देश के गॉव-गॉव में ढ़ोलक पर थाप पड़ने लगती है,झांझतों की झंकार खनखता उठती है और लोक गीतों के स्वर समूचे वातावरण को मादक बना देते है। आज भी ब्रज की तरह गांवों व शहरों के नरनारी बालक-वृद्घ सभी एकत्रित होकर खाते है पीते -गाते है और मस्ती में नाचते है।
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भारतवर्ष की ख्याति पर्व-त्यौहारों के देश के रूप में है। प्रत्येक पर्व-त्यौहार के पीछे परंपरागत लोकमान्यताएं एवं कल्याणकारी संदेश निहित है। इन पर्व-त्यौहारों की श्रृंखला में होली का विशेष महत्व है। इस्लाम के अनुयायियों में जो स्थान ‘ईद' का है, ईसाइयों में ‘क्रिसमस' का है, वही स्थान हिंदुओं में होली का है। होली का आगमन इस बात का सूचक है कि अब चारों तरफ वसंत ऋतु का सुवास फैलनेवाला है। यह पर्व शिशिर ऋतु की समाप्ति और ग्रीष्म ऋतु के आगमन का प्रतीक है। वसंत के आगमन के साथ ही फसल पक जाती है और किसान फसल काटने की तैयारी में जुट जाते हैं। वसंत की आगमन तिथि फाल्गुनी पूर्णिमा पर होली का आगमन होता है, जो मनुष्य के जीवन को आनंद और उल्लास से प्लावित कर देता है।
होली का पर्व मनाने की पृष्ठभूमि में अनेक पौराणिक कथाएं एवं सांस्कृतिक घटनाएं जुड़ी हुई हैं। पौराणिक कथा की दृष्टि से इस पर्व का संबंध प्रह्लाद और होलिका की कथा से जोड़ा जाता है। प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यप नास्तिक थे तथा वे नहीं चाहते थे कि उनके घर या पूरे राज्य में उन्हें छोड़कर किसी और की पूजा की जाए। जो भी ऐसा करता था, उसे जान से मार दिया जाता था। प्रह्लाद को उन्होंने कई बार मना किया कि वे भगवान विष्णु की पूजा छोड़ दे, परंतु वह नहीं माना। अंततः उसे मारने के लिए उन्होंने अनेक उपाय किए, परंतु सपफल नहीं हुए। हिरण्यकश्यप की बहन का नाम होलिका था, जिसे यह वरदान प्राप्त था कि वह अग्नि मंे नहीं जलेगी। हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ जाए ताकि प्रह्लाद जलकर राख हो जाए। होलिका प्रह्लाद को लेकर जैसे ही आग के ढेर पर बैठी, वह स्वयं जलकर राख हो गई, भक्त प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ। बाद में भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया। उसी समय से होलिका दहन और होलिकोत्सव इस रूप में मनाया जाने लगा कि वह अधर्म के ऊपर धर्म, बुराई के ऊपर भलाई और पशुत्व के ऊपर देवत्व की विजय का पर्व है। एक कथा यह भी प्रचलित है कि जब भगवान श्रीकृष्ण ने दुष्टों का दमन कर गोपबालाओं के साथ रास रचाया, तब से होली का प्रचलन शुरू हुआ। श्रीकृष्ण के संबंध में एक कथा यह भी प्रचलित है कि जिस दिन उन्होंने पूतना राक्षसी का वध किया, उसी हर्ष में गोकुलवासियों ने रंग का उत्सव मनाया था। लोकमानस में रचा-बसा होली का पर्व भारत में हिन्दुमतावलंबी जिस उत्साह के साथ मनाते हैं, उनके साथ अन्य समुदाय के लोग भी घुल-मिल जाते हैं। उसे देखकर यही लगता है कि यह पर्व विभिन्न संस्कृतियों को एकीकृत कर आपसी एकता, सद्भाव तथा भाईचारे का परिचय देता है। फाल्गुन की पूर्णिमा के दिन लोग घरों से लकड़ियां इकट्ठी करते हैं तथा समूहों में खड़े होकर होलिका दहन करते हैं। होलिका दहन के अगले दिन प्रातःकाल से दोपहर तक फाग खेलने की परंपरा है। प्रत्येक आयुवर्ग के लोग रंगों के इस त्यौहार में भागीदारी करते हैं। इस पर्व में लोग भेदभाव को भुलाकर एक दूसरे के मुंह पर अबीर-गुलाल मल देते हैं। पारिवारिक सदस्यों के बीच भी उत्साह के साथ रंगों का यह पर्व मनाया जाता है।
hariom3835:
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